किसानो की आत्महत्या की प्रवृत्ति के
विषय पर एक आलेख तैयार कीजिये
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भारत में अन्य देशों की तरह किसानों के आत्महत्या के मामले अन्य व्यवसायों की तुलना में कहीं ज्यादा हैं। आंकड़े बताते हैं कि देश में कुल आत्महत्याओं का 11.2% हिस्सा किसान कर रहे हैं। भारत में किसानों की आत्महत्या के लिए कई कारक योगदान करते हैं। यहां इन कारणों की विस्तृत जानकारी दी गई है और साथ ही संकट में किसानों की मदद के लिए सरकार द्वारा उठाए गए उपायों की जानकारी दी गई है।
किसान यह चरम कदम क्यों उठा रहे हैं?
भारत में किसान आत्महत्या कर रहे हैं इसके कई कारण हैं। मुख्य कारणों में से एक देश में अनियमित मौसम की स्थिति है। ग्लोबल वार्मिंग ने देश के अधिकांश हिस्सों में सूखा और बाढ़ जैसी चरम मौसम की स्थिति पैदा की है। ऐसी चरम स्थितियों से फसलों को नुकसान पहुंचता है और किसानों के पास खाने को कुछ नहीं बचता। जब फसल की उपज पर्याप्त नहीं होती तो किसान अपनी वित्तीय जरूरतों को पूरा करने के लिए कर्ज लेने पर मजबूर हो जाते हैं। ऋण चुकाने में असमर्थ कई किसान आमतौर पर आत्महत्या करने का दुर्भाग्यपूर्ण कदम उठाते हैं।
ज्यादातर किसान परिवार के एकमात्र कमाने वाले व्यक्ति होते हैं। उन्हें परिवार की मांगों और जिम्मेदारियों को पूरा करने के लिए लगातार दबाव का सामना करना पड़ता है और उसे पूरा करने में असफल होने की वजह से अक्सर तनाव में रहने वाला किसान आत्महत्या का कदम उठा लेता है। भारत में किसान आत्महत्या के मामलों की बढ़ती संख्या के लिए ज़िम्मेदार अन्य कारकों में कम उत्पादन की कीमतें, सरकारी नीतियों में बदलाव, खराब सिंचाई सुविधाएं और शराब की लत शामिल है।
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भारत में किसान आत्महत्या १९९० के बाद पैदा हुई स्थिति है जिसमें प्रतिवर्ष दस हज़ार से अधिक किसानों के द्वारा आत्महत्या की रपटें दर्ज की गई है। १९९७ से २००६ के बीच १,६६,३०४ किसानों ने आत्महत्या की।[1]भारतीय कृषि बहुत हद तक मानसून पर निर्भर है तथा मानसून की असफलता के कारण नकदी फसलें नष्ट होना किसानों द्वारा की गई आत्महत्याओं का मुख्य कारण माना जाता रहा है। मानसून की विफलता, सूखा, कीमतों में वृद्धि, ऋण का अत्यधिक बोझ आदि परिस्तिथियाँ, समस्याओं के एक चक्र की शुरुआत करती हैं। बैंकों, महाजनों, बिचौलियों आदि के चक्र में फँसकर भारत के विभिन्न हिस्सों के किसानों ने आत्महत्याएँ की है।[2]