Hindi, asked by saranyapawar70, 7 months ago

किसानों का गाँव था, मेहनती आदमी के लिए पचास काम था मगर
इन दोनों को लोग उसी वक्त वुलाते थे, जब दो आदमिया में एक का काम
पाकर भी संतोष कर लेने के सिवा और कोई चाग न होता। अगर दाना
साधु होते तो उन्हें संतोष और धैर्य के लिए संयम और नियम की बिलकन
जरूरत न होती । यह तो इनकी प्रकृति थी। विचित्र जीवन था इनका घर
में मिट्टी के दो-चार वर्तनों के सिवा कोई संपत्ति नहीं। फटे चीथड़ों में
अपनी नग्नता को ढाँके हुए जिये जाते थे। संसार की चिंताआ में मुक्त, कर्ज
से लदे हुए। गालियाँ भी खाते, मार भी खाते, मगर कोई भी गम नहीं। दीन
इतने कि वसूली की बिलकुल आशा न रहने पर भी लोग इन्हें कुछ-न-कुछ
कर्ज़ दे देते थे। मटर, आलू की फसल में दूसरों के खेतों में मटर या आल
उखाड़ लाते और भून-भानकर खा लेते या दस-पाँच ऊख उखाड़ लाने और
रात को चूसते । translate in english​

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Answered by hi693567
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Answer:

Nahi ata sorry bas points chaiya iss liya kar raha hu

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