किसान नील खेती कयो नहीं करना चाहते थे
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Explanation:इस विद्रोह के आरम्भ में नदिया जिले के किसानों ने 1859 के फरवरी-मार्च में नील का एक भी बीज बोने से मना कर दिया। यह आन्दोलन पूरी तरह से अहिंसक था तथा इसमें भारत के हिन्दू और मुसलमान दोनो ने बराबर का हिस्सा लिया। सन् 186० तक बंगाल में नील की खेती लगभग ठप पड़ गई। सन् 186० में इसके लिए एक आयोग गठित किया गया।
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Kyoki nil ke kaaran kheto ki upjau shakti khatm hone lagti thi aur to aur unki bikri kaafi kam aur ghaate me hoti thi
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