किसानों और सैनिकों ब्रिटिश शासन के लिए क्या आपत्ति थी
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मेरठ के बिजरौल गांव के किसान शाह मल की कहानी जिन्होंने अंग्रेज़ों से लोहा लिया था. ... 10 मई, 2017 को 1857 के विद्रोह- ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन के ख़िलाफ़ विद्रोह की 160वीं वर्षगांठ पर एक छोटा सा उत्सव मनाया गया. ... ने लिखा है, "इस ज़िले के लोग यह जानने के लिए उत्साहित थे कि 'उनके राज' की जीत हुई थी या फिर हमारे राज की जीत हुई. ... करीब 3,500 किसानों ने घुड़सवारों, पैदल सेना और तोपखाना रेजिमेंट से लैस ईस्ट इंडिया कंपनी के ब्रिटिश सैनिकों के साथ संघर्ष किया
चौधरी हिम्मत सिंह खटाणा का गांव रिठौज गुडगांव जिले में आबाद है। मेरठ से कोतवाल धनसिंह गुर्जर के बिगुल फूंकने कि चिंगारी दिल्ली तक आ पहुंची।[1] हिम्मत सिंह ने 1857 की क्रान्ति में बढ़ चढ़ कर भाग लिया था। 13 मई 1857 के दिन सिलानी गांव में गुर्जरों और अंग्रेंजी फौज की डट कर टक्कर हुई थी।[2] गुर्जरों का नेता चौ.हिम्मत सिंह खटाणा था और अंग्रेंजो का सेनापति विलियम फोर्ड था। हिम्मतसिंह के साथ निकट गावों के खटाणे व बैंसले तथा इनके समीपस्थ रहने वाले मेव भी थे । विलियम फोर्ड क्रान्तिकारी गांवों के दमन चक्र के लिए ही निकला था, मोहम्मदपुर, नरसिंह पुर, बेगमपुर, खटोला, दरबारी हसनपुर, रामगढ़ तंवर, भोआपुर, नया गांव, कादरपुर तिगरा उल्हावास, बहरमपुर, घाटा, बालियाबाद, बन्धवाड़ी, गुआलपहाड़ी, नाथूपुर, अहिया नगर, घिटरौनी, फतेहपुर बेरी आदि गांवों के तंवर, हरषाणें, भाटी, लोहमोड़, घोड़ा रोप, बोकन, खटाने, बैंसले आदि वंश के गुर्जरों ने विलियम फोर्ड का 300 सैनिक दस्ती पर जो हथियारों से लैस था अपना दुश्मन समझ कर सिलानी के पास जोरदार हमला कर दिया था। इस लड़ाई में अनेक अंग्रेंज मारे गए थे।[3] बहुत से बन्दी बना लिए गए । अंग्रेंजों से बैलों की दांय चलवाई । 784000रू0 लड़ाई में गुर्जरों के हाथ लगा । गुर्जरों का नेता हिम्मत सिंह खटाणा इस लड़ाई में शहीद हुआ । हिम्मत सिंह खटाणा बहादुर देश भक्त तथा स्वाधीनता प्रिय था। सारे इलाके में इनके निधन पर शोक छा गया था। रिठौज गांव के बड़े ताल के पास इनका स्मारक बनाया गया । जिसे छतरी कहते हैं। दिवाली के दिन यहा हर वर्ष मेला लगता है।
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