(क) सुनार को थैलियाँ भर-भरकर इनाम मिला। वह उसी घड़ी अपने घर की ओर रवाना हो गया। पण्डित जी तोते
को विद्या पढ़ाने बैठे। नस लेकर बोले, "यह काम थोड़ी पोथियों का नहीं है।"
राजा के भानजे ने सुना। उन्होंने उसी समय पोथी लिखने वालों को बुलवाया। पोथियों की नकल होने लगी। नकलों
के पहाड़ लग गये जिसने भी देखा, उसने यही कहा कि, "शाबाश! इतनी विद्या के धरने को जगह भी नहीं रहेगी।"
नकलनवीसों को लटू बैलों पर लाद-लादकर इनाम दिये गए। वे अपने-अपने घर की ओर दौड़ पड़े। उनकी दुनिया
में तंगी का नाम-निशान भी बाकी न रहा।
दामी पिजरे की देख-रेख में राजा के भानजे बहुत व्यस्त रहने लगे। इतने व्यस्त कि व्यस्तता की कोई सीमा न रही।
मरम्मत के काम भी लगे ही रहते थे। फिर झाडू पोंछा और पालिश की धूम भी मची ही रहती थी। जो भी देखता, यही कहता
कि "उन्नति हो रही है।"
प्रश्न- (अ) प्रस्तुत गद्यांश का सन्दर्भ लिखिए।
(ब) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
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(अ) पोथियों की नकल
(ब)
Explanation:
आप ने किसी अंश को रेखांकित नही किया है
आप अंश को रेखांकित करे
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