Economy, asked by niveditakanojia, 5 months ago

किस प्रकार गरीब और अमीर लोगों के विकास के लक्ष्य विरोधाभासी हो सकते हैं? उदाहरण दीजिए​

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Answered by peehuthakur
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Answer:

पांच-छह साल पहले आई मंदी से लेकर अब तक विश्व में अरबपतियों की संख्या दोगुनी से भी ज्यादा हो चुकी है। मार्च 2009 में विश्व में 793 अरबपति थे, जबकि मार्च 2014 में इनकी संख्या बढ़कर 1645 हो गई। यह वह दौर था, जब कई देशों में भुखमरी और बेरोजगारी चरम पर थी। यही नहीं, अमीरों की सम्पत्ति में हर मिनट पांच लाख डालर की वृद्धि हो रही है। संसार की आधी गरीब जनसंख्या के पास कुल मिलाकर जितनी दौलत है, उतनी तो आज गिनती के सिर्फ 85 लोगों के पास है। अमीर-गरीब के बीच बढ़ती खाई ने अपना भयावह असर दिखाना शुरू कर दिया है।

साधारण जनता में भारी आक्रोश है। इसकी अभिव्यक्ति अपराध और हिंसक प्रदर्शनों में हो रही है। हाल तक असमानता और धनी-गरीब के बीच की खाई के बारे में बात करना पिछड़ेपन का पर्याय समझा जाता था। इसे हाशिए पर जा चुके मार्क्सवादियों की सनक के रूप में देखा जाता था, लेकिन अभी पूंजीवाद के पैरोकारों की भाषा भी बदल चुकी है। दरअसल इस मंदी ने पूंजीवाद के मौजूदा विकास मॉडल की पोल खोलकर रख दी है। जो लोग कल तक बाजार अर्थव्यवस्था को हर समस्या के लिए रामबाण बनाते थे, वही अब असमानता का रोना रो रहे हैं। ‘ट्रिकल डाउन थ्योरी’ का हवाला देते हुए वे कहते थे कि ऊपर की समृद्धि रिस-रिस कर समाज के निचले वर्ग में भी खुशहाली लाएगी, पर यह बातें हवा-हवाई ही साबित हुई हैं। विकास के इस ढांचे ने अमीरों को और अमीर बनाया है, जबकि गरीबों को जिंदा रहने लायक भी नहीं छोड़ा है। विकसित देशों में आई भारी बेरोजगारी से वहां के शासकों के माथे पर बल पड़े हुए हैं। कुछ समय पहले अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने वहां के समाज में बढ़ती आर्थिक असमानता पर गहरी चिंता व्यक्त की थी।

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