किसी प्रसिद्ध समाचार पत्र के संपादक को 80-100 शब्दों में पत्र लिखे जिसमे खाद्य वस्तुओं में मिलावट के बारे में जनता और प्रशासन को अपने दायित्व का निर्वाह करने के लिए प्रेरित किया गया हो
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चर्चा का कारण
हाल ही में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भारत सरकार के लिए एक एडवायजरी जारी की जिसमे कहा गया कि अगर दूध और दूध से बने प्रोडक्ट में मिलावट पर लगाम नहीं लगाई गई तो साल 2025 तक देश की करीब 87 फीसदी आबादी कैंसर की चपेट में होगी।
परिचय
सामान्य रूप से किसी खाद्य पदार्थ में कोई बाहरी तत्व मिला दिया जाए या उसमें से कोई मूल्यवान पोषक तत्व निकाल लिया जाए या भोज्य पदार्थ को अनुचित ढंग से संग्रहीत किया जाए तो उसकी गुणवत्ता में कमी आ जाती है। इसलिए उस खाद्य सामग्री या भोज्य पदार्थ को मिलावटयुक्त कहा जाता है। आज हालात यह हैं कि बाजार में उपलब्ध खाद्य पदार्थों में मिलावट का संशय बना रहता है। दालें, अनाज, दूध, मसाले, घी से लेकर सब्जी व फल तक कोई भी खाद्य पदार्थ मिलावट से अछूता नहीं रहा है।
मिलावट का प्रभाव
वर्तमान समय में मिलावट का सबसे अधिक कुप्रभाव हमारी रोजमर्रा के जीवन में प्रयोग होने वाली जरूरत की वस्तुओं पर ही पड़ रहा है। अनेक स्वार्थी उत्पादक एवं व्यापारी कम समय में अधिक लाभ कमाने के लिए खाद्य सामाग्री में अनेक सस्ते अवयवों की मिलावट कर रहे हैं, स्मरणीय हो कि शरीर के पोषण के लिए हमें खाद्य पदार्थों की प्रतिदिन आवश्यकता होती है। शरीर को स्वस्थ रखने हेतु प्रोटीन, वसा, कार्बोहाइड्रेट, विटामिन तथा खनिज लवण आदि की पर्याप्त मात्र को आहार में शामिल करना आवश्यक होता है तथा ये सभी पोषक तत्वसरकारी प्रयास
भारत सरकार द्वारा खाद्य सामग्री की मिलावट की रोकथाम तथा उपभोक्ताओं को शुद्ध आहार उपलब्ध कराने के लिए सन् 1954 में खाद्य अपमिश्रण अधिनियम (पीएफए एक्ट 1954) लागू किया गया। उपभोक्ताओं के लिए शुद्ध खाद्य पदार्थों की आपूर्ति सुनिश्चित करना स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय की जिम्मेदारी है। इसको ध्यान में रखते हुए उपरोत्तफ़ खाद्य अपमिश्रण रोकथाम अधिनियम बनाया गया, जिसके मुख्य उद्देश्य हैं-
जहरीले एवं हानिकारक खाद्य पदार्थों से जनता की रक्षा करना।
घटिया खाद्य पदार्थों की बिक्री की रोकथाम
धोखाधड़ी प्रथा को नष्ट करके उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा करना
इसके अलवा सरकार द्वारा खाद्य सुरक्षा एवं मानक अधिनियम- 2006 में सजा और जुर्माना दोनों का प्रावधान किया गया। इस कानून में दूषित एवं मिलावटी भोजन के उत्पादकों, वितरकों, विक्रेताओं और सेवा प्रदाताओं के लिए कम से कम 10 लाख रुपये का जुर्माना और 6 महीने से लेकर उम्रकैद तक का प्रावधान किया गया है। साथ ही एफएसएसएआई ने ‘खाद्य सुरक्षा और पोषण निधि’ निर्मित किये जाने का भी सुझाव दिया है जिसका उद्देश्य खाद्य व्यवसायियों और उपभोक्ताओं के बीच इसका प्रचार और आउटरीच गतिविधियों का समर्थन करना है।
विदित हो कि आजकल दूध में हो रही मिलावट को देखते हुए इसे रोकने के लिए फूड सेफ्रटी एंड स्टैंडडर्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया (Food Safety and Standards Authority of India) ने 1 जनवरी 2020 से एक नया नियम बनाने जा रही है जिसके अनुसार अब संगठित क्षेत्र के दूध कंपनियां जैसे मदर डेरी (Mother Dairy), अमूल (AMUL), पारस (Paras) को भी अपने दूध के सैंपल (Milk Sample) की जाँच FSSAI की लैब में कराना होगा।
सरकार द्वारा मिलावट को रोकने के लिए आईपीसी की धारा 272 एवं 273 के अंतर्गत पुलिस प्रशासन को सीधे कार्रवाई की भी छूट दी गई है।
गौरतलब है कि सरकार ने इस दिशा में आगे बढ़ते हुए मिलावटी और गैर-गुणवत्तापूर्ण खाने-पीने की चीजों पर रोकथाम के लिए भारतीय खाद्य संरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआइ) की स्थापना भी की है।
सुप्रीम कोर्ट ने इस दिशा में कदम उठाते हुए 2016 में केंद्र और राज्य सरकारों को फूड सेफ्रटी ऐंड स्टैंडर्ड्स एक्ट-2006 को प्रभावी तरीके से लागू करने के निर्देश दिया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राज्य की फूड सेफ्रटी अथॉरिटी अपने इलाके में मिलावट के लिए हाई रिस्क क्षेत्र और त्योहार के दौरान ज्यादा से ज्यादा सैंपल ले। साथ ही, राज्य की फूड सेफ्रटी अथॉरिटी यह तय करे कि इलाके में पर्याप्त मान्यता प्राप्त लैब हों। राज्य और जिला स्तर पर लैब पूरी तरह संसाधनों, टेक्निकल प्रोफेशनल और टेस्ट की सुविधा से भी लैस हो।
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