किसी पर्यटन स्थल की यात्रा पूरी करके छात्रावास सकुशल पहुँच जाने की सूचना पत्र द्वारा अपने पिता जी को दीजिए।
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पत्र-एक आवश्यकता
पत्र लेखन दो व्यक्तियों के बीच संवाद स्थापित करने का एक साधन है। प्राचीन समय में भी इसका प्रचलन रहा है। आज भी है, परंतु प्रारूप में परिवर्तन आ गया है।
सूचना-क्रांति के इस युग में मोबाइल फ़ोन, इंटरनेट आदि के प्रचलन से पत्र-लेखन में कमी आई है, फिर भी पत्रों का अपना विशेष महत्त्व है और रहेगा।
अन्य कलाओं की तरह ही पत्र-लेखन भी एक कला है। पत्र पढ़ने से लिखने वाले की एक छवि हमारे सामने उभरती है। कहा गया है कि धनुष से निकला तीर और पत्री में लिखा शब्द वापस नहीं आता है, इसलिए पत्र-लेखन करते समय सजग रहकर मर्यादित शब्दों का ही प्रयोग करना चाहिए।
परीक्षा भवन
नई दिल्ली
दिनांक : 22 जुलाई, 20XX
पूज्य पिता जी
चरण स्पर्श
पर्यटन स्थल की यात्रा पूरी करके आने पर आपका पत्र मिला। आपने लिखा है कि छात्रावास में पहुँचते ही आपको अपनी यात्रा के विषय में सूचना दूँ। सो पिता जी आगरा की यह यात्रा बहुत ही मनोरंजक व ज्ञानवर्धक रही। आगरा में सबसे अच्छा मुझे 'ताजमहल' लगा। इसके बारे में जितना मैंने आज तक पढ़ा 2T, इसका सौंदर्य उससे भी कहीं बढ़कर है। चंद्रमा की छिटकी चाँदनी में इसकी सुंदरता देखते ही बनती है। यह मुमताज महल की स्मृति में शाहजहाँ द्वारा बनवाया गया है। कुछ इतिहासकार इसे महाराजा जयसिंह का प्राचीन किला बताते हैं। यह समूचा महल संगमरमर का बना हुआ है। यह यमुना नदी के किनारे पर वना है। ताजमहल के द्वार से लेकर मुख्य भवन तक सड़क के दोनों ओर पंक्तिवद्ध खड़े सरों के वृक्षों की पंक्ति तथा इनके बीच लगे फव्वारों की शोभा देखते ही बनती है। आगे संगमरमर के विशाल चबूतरे पर इस महल का निर्माण किया गया है। चबूतरे के चारों कोनों पर चार गगनचुंबी मीनारें हैं। इस विशाल भवन के बीचों-बीच शाहजहाँ और मुमताज की कब्रें हैं, पर उनकी असली कब्रें ठीक इनके नीचे तहखाने में हैं।
पूर्णिमा की चाँदनी रात में हमने इस महल के अद्वितीय सौंदर्य को देखा। महल की शिल्पकारी और नक्काशी देखकर इसके निर्माता कारीगरों की प्रशंसा किए बिना नहीं रहा जाता। पिता जी आप भी अवश्य माता जी को लेकर इस अद्भुत सौंदर्य को देख आएँ, तभी आप मेरे आनंद का अनुभव कर सकेंगे। बस पत्र अब यहीं समाप्त करता हूँ। माता जी को मेरा प्रणाम कहिएगा।
आपका सुपुत्र
अ०व०स०