Hindi, asked by bhardwajshivam76878, 1 month ago

क) सूर के पद श्रृंगार रस का उदाहरण क्यों माने जा सकते हैं? ख) हालदार साहब ने चीख कर जीप क्यों रुकवाई? लकरी क्यों कहा गया है?​

Answers

Answered by sunprince0000
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रस के भेद –

रस के भेद और उनके उदाहरण निम्नलिखित हैं –

 

1. श्रृंगार रस-शृंगार रस का आधार स्त्री-पुरुष का सहज आकर्षण है। स्त्री-पुरुष में सहज रूप से विद्यमान रति नामक स्थायीभाव, विभाव, अनुभाव और संचारीभाव के संयोग से आनंद लेने योग्य हो जाता है, तब इसे शृंगार रस कहते हैं।

अनुभूतियों के आधार पर शृंगार रस के दो भेद होते हैं –

(क) संयोग शृंगार रस

(ख) वियोग शृंगार रस

(क) संयोग श्रृंगार रस – काव्य में या अन्यत्र जब नायक-नायिका के मिलन का वर्णन होता है, तब वहाँ संयोग शृंगार रस होता

उदाहरण – वर्षा ऋतु में रात्रि के समय बिजली चमक रही है, बादल बरस रहे हैं। दादुरमोर की आवाज़ सुनाई देती है। पद्मावती अपने प्रीतम के संग जागती हुई वर्षा का आनंद ले रही है और बादलों की गर्जना सुनकर चौंककर प्रीतम के सीने से लग जाती है। संयोग शृंगार का वर्णन देखिए

 

“पदमावति चाहत रितु पाई, गगन सुहावन भूमि सुहाई।

चमक बीजु बरसै जग सोना, दादुर मोर सबद सुठिलोना॥

रंगराती प्रीतम संग जागी, गरजै गगन चौंकि उर लागी।

शीतल बूंद ऊँच चौपारा, हरियर सब देखाइ संसारा॥ (मलिक मोहम्मद जायसी)

यहाँ स्थायीभाव रति (प्रेम) है। रानी पद्मावती आश्रय तथा आलंबन उसका प्रीतम है। बिजली चमकना, दादुर-मोर का बोलना, बादलों का गरजना उद्दीपन विभाव तथा चौंककर सीने से लग जाना डरना संचारी भाव है।

(ख) वियोग श्रृंगार रस-प्रिय से बिछड़कर वियोगावस्था में दिन बिता रहे नायक-नायिका की अवस्था का वर्णन होता है, तब वियोग शृंगार होता है

मनमोहन तै बिछुरी जब सौं,

तन आँसुन सौ सदा धोवती हैं।

हरिश्चंद जू प्रेम के फंद परी

कुल की कुल लाजहि खोवती हैं।

दुख के दिन कोऊ भाँति बितै

विरहागम रंग संजोवती है।

हम ही अपनी दशा जानें सखी,

निसि सोबती है किधौं रोबती हैं। (‘भारतेंदु हरिश्चंद’)

 

यहाँ स्थायी भाव रति (प्रेम) है। विरहिणी नायिका आश्रय तथा उसका प्रिय (मनमोहन) आलंबन है। विभाव-मिलन के सुखद दिन तथा संचारी भाव-पूर्व मिलन की यादें, दुख आदि, जिनके संयोग से वियोग शृंगार रस की अनुभूति हो रही है।

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