(क) सैसव-जौवन दुहु मिलि गेल, स्रवनक पथ दुहु लोचन लेल।
वचनक चातुरि लहु-लहु हास, धरनिये चाँद कसल परगास।
मुकुर लई अब करई सिंगार, सखि पूछड़ कइर सुरत विहार।
निरजन उरज हेरइ कत बेरि, इंसइ से अपन पयोधर हेरि।
पहिल बदरि सम पुन नवरंग, दिन दिन अनँग अगोरल अंग।
माधव पेखल अपुरब बाला, सैसव यौवन दुहुँ एक भेला।
विद्यापति कह तुहुअगेअनि, दुहुँ एक जोग इह के कह सयानि।
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