Chemistry, asked by punamdeviprince, 8 months ago

किसी तत्व के संकेत से क्या सूचनाएं प्राप्त होती है?​

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संकेत और सूत्र: रासायनिक संघटन की एक अभिव्यक्ति

सुशील जोशी

हमारे लिए कितना आसान है न लोहे को Fe, हाइड्रोजन को H1 ऑक्सीजन को से O दर्शाया। लेकिन जब वैज्ञानिक रसायन शास्त्र की इस भाषा को खोजने में लगे हुए थे तब सब कुछ इतना आसान नहीं था।

जब किसी एक काम के लिए कोई भाषा विकसित होती है तो धीरे-धीरे एक और प्रक्रिया भी चलती है। वह काम उस भाषा से निर्धारित होने लगता है यानी कि उस भाषा के दायरे में बंधने-सा लगता है। और फिर कई मर्तबा पुरानी भाषा में उस काम की अभिव्यक्ति मुश्किल हो जाती है।

रसायन शास्त्र को उसकी विशिष्ट भाषा 18वीं-19वीं सदी में मिली। यह भाषा थी संकेत, सूत्र व समीकरण की। ऐसा नहीं कि उससे पहले संकेतों का उपयोग न किया जाता रहा हो। किमियागिर यानी अलकेमिस्ट लोग भी विभिन्न तत्वों को दर्शाने के लिए संकेतों का उपयोग करते थे मगर अलकेमी के संकेत और आधुनिक संकेतों में ज़मीन-आसमान का अंतर है।

दरअसल अलकेमी के तत्व ही कुछ और चीज़ थे। आज हम तत्वों का अर्थ और चीज़ थे। आज हम तत्वों का अर्थ भौतिक पदार्थ से लगाते हैं। अलकेमी के लिए तत्व का अर्थ गुणों से था। पारा वास्तव में कोई भौतिक पदार्थ न होकर कई गुणों (जिन्हें उस समय तत्व कहा जाता था) का मिला-जुला रूप था। इन गुणों को एक साथ या अलग-अलग किसी दूसरे पदार्थ में प्रविष्टि कराना ही रासायनिक क्रिया थी। इसलिए जब पारे का संकेत बनाया गया तो इसका मतलब मात्र एक चित्रात्मक प्रस्तुति भर था। ध्यान दीजिए कि से इसकी बनावट का कोई आभास नहीं मिलता। आधुनिक रसायनशास्त्र में हम जिस रूप में संकेतों को समझते हैं उससे इसका कोई संबंध नहीं है।

क्या थे अलकिमिया के संकेत : इन संकेतों से तत्वों के संघटन का कोई अभ्यास नहीं मिलता। ये सिर्फ एक चित्रात्मक प्रस्तुति ही कहे जा सकते हैं।

आधुनिक संकेत

वास्तव में आधुनिक संकेतों की शुरूआत भी शायद शॉर्टहैंड के नज़रिए से हुई थी। आधुनिक रसायनशास्त्र में संकेत का ज़िक्र हमें सर्वप्रथम गायटन, लेवोज़िए, बर्थोलेट व फोरक्राय की पुस्तक ‘मेथोड-डी-नॉमेनक्लेचर किमीक’ (1787) में मिलता है। इस पुस्तक में पहली बार रासायनिक पदार्थों के नामकरण के सिद्धांतों को प्रस्तुत किया गया। पहला सिद्धांत तो यह था कि पदार्थ के नाम उसकी बनावट को दर्शाएंगे। इसके अलावा इस पुस्तक में यह भी सुझाव दिया गया था कि पदार्थ के नाम आमतौर पर ग्रीक व लैटिन मूल्य पर आधारित होंगे। यहां यह बात गौरतलब है कि गायटन पर ‘कार्ल लिनियस’ का बहुत प्रभाव था और शुरूआत में पेड़-पौधों व जीव-जन्तुओं का नामकरण नए सिरे से करने का काम किया था।

इस नामकरण की सबसे प्रमुख बात यह थी कि इसमें सारे नामों का आधार तत्वों के नामों को बनाया गया था। जो भी उस समय सरलतर पदार्थों में विभक्त न किया जा सका हो उसे तत्व माना गया था। अलकिमिया से यह एक प्रमुख अंतर है कि इस नए तरीके में प्रत्येक तत्व का संकेत तो स्वतंत्र होगा मगर उन तत्वों से मिलकर बने यौगिक के संकेत (सूत्र) इन तत्वों के संकेतों से मिलकर बनेंगे।

रसायन शास्त्र और प्रयोगशाला: 1825 में जर्मनी के गिएसन विश् वविद्यालय के प्रोफेसर जुस्टस वॉन लेबिग द्वारा स्थापित प्रयोगशाला का 1842 में बनाया गया रेखाचित्र। यह प्रयोगशाला करीब 30 साल तक रसायनज्ञों के लिए एक महत्वपूर्ण जगह बनी रही, जहां वे आकर काम करते थे।

बहरहाल इस पुस्तक के प्रकाशक ने तथा लेवोज़िए के प्रयासों ने रसायनज्ञों का ध्यान मात्रात्मक अध्ययन की ओर आकृष्ट किया। लेवोज़िए का निम्नलिखित कथन गौरतलब है:

"हम सिर्फ शब्दों के माध्यम से सोचते हैं। भाषा वास्तव में विश्लेषण की विधि होती है। बीजगणित (अलजबरा)...एक भाषा भी है और विश्लेषण की विधि भी है। तर्क की कला दरअसल एक सुव्यवस्थित भाषा से अधिक कुछ नहीं है।"

लेवोज़िए इस बात को भलीभांति समझ चुके थे कि पदार्थों के नाम मात्र छोटे रूप में लिखने के लिए चंद संकेत का इस्तेमाल, और रासायनिक बनावट व क्रियाओं को व्यक्त करने के लिए संकेतों की भाषा के इस्तेमाल में बहुत फर्क है।

डाल्टन के संकेत और विभिन्न तत्वों के परमाणु भार: 1803 में डाल्टन ने अपना प्रसिद्ध परमाणु सिद्धांत प्रस्तुत किया। साथ ही उन्होंने विभिन् न तत्वों के लिए संकेत भी बनाए। जो ज्यामितीय आकृतियां अधिक लगते थे। इनके प्रचलन में नहीं आने का एक सबसे बड़ा कारण था, छपाई में दिक्कतें पेश आना।

क्या है यह फर्क?

यह फर्क अलकेमी और आधुनिक रसायनशास्त्र का फर्क है। आधुतनिक रसायनशास्त्र के संकेतों का विकास परमाणु सिद्धांत तथा पदार्थों की परमाणु अवधारणा के साथ हुआ।

नवीन रसायनशास्त्र में जब आप क्त (या डाल्टन की भाषा में ) लिखते हैं तो यह हाइड्रोजन को लिखने का संक्षिप्त रूप ही नहीं है - इस संकेत से पदार्थ की मात्रा का भी पता चल

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