किसी देश की सभ्यता का मापदंड उस देश का व्यापार है। दूसरे देशों से जो हमारी आवश्यकताओं की पूर्ति होती है, वह व्यापार के बल पर होती है। व्यापार में आयात और निर्यात दोनों ही सम्मिलित हैं। व्यापार और वाणिज्य की समृद्धि के लिए व्यापारी को अच्छा आचरण रखना बहुत आवश्यक है। उसे सत्य से प्रेम करना चाहिए। अकेला यही गुण उसे अनेक सांसारिक झंझटों से बचाने में सफल हो सकेगा और उसे एक चतुर व्यापारी बना सकेगा, क्योंकि जो आदमी सच्चा होता है वह अपने काम-काज और व्यवहार में सादगी से काम लेता है। फल यह होता है कि उससे गलती कम होती है और नुकसान उठाने के अवसर बहुत कम आते हैं। व्यापार में दूसरे देशों पर हमारी निर्भरता अभी बढ़ी हुई है। जब तक यह निर्भरता रहेगी तब तक हम सच्चे अर्थ में स्वतंत्र नहीं हो सकते हैं। हमें अपनी आवश्यकताओं को कम करके जीवन का स्तर नीचे गिराने की आवश्यकता नहीं है, वरन हमको अपने देश का उत्पादन बढ़ाकर अन्य देशों की भाँति आत्मनिर्भरता प्राप्त कर लेना वांछनीय है। विलास की वस्तुओं के लिए धन बाहर भेजना लक्ष्मी का अपमान है। हम सभ्य तभी कहे जा सकते हैं, जब हम अपनी सभ्यता के पसाधनों के लिए दूसरे देशों पर निर्भर न रहें।
इस गद्यांश का उचित शीर्षक है. - * *
व्यापार
व्यवसाय का गुण
व्यापारी की सफलता का रहस्य
व्यापार की निपुणता
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इस गद्यांश का उचित शीर्षक ::- व्यवसाय का गुण ::- होना चाहिए।
क्योंकि इसमें व्यवसाय के गुणों के बारे में ही चर्चा की गई है।
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