किसी वैज्ञानिक के बारे में लिखिए । ( 100 to 150 words)
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Hi,
एपीजे अब्दुल कलाम को भारत के ग्यारहवें राष्ट्रपति के तौर पर अधिक जाना जाता है जो साल 2002 से लेकर साल 2007 तक भारत के राष्ट्रपति के पद पर रहे | इस से पहले कलाम विज्ञान क्षेत्र में सक्रिय थे | कलाम ने तमिलनाडु के रामेश्वरम में जन्म लिया और वन्ही पर उनका पालन पोषण भी हुआ | शिक्षा के लिहाज से उन्होंने अन्तरिक्ष विज्ञान और भौतिक विज्ञान की पढाई की | अपने करियर के अगले करीब चालीस सालों तक वो भारतीय रक्षा अनुसन्धान और विकास संगठन यानि संक्षेप में कहें तो डीआरडीओ और भारतीय अन्तरिक्ष अनुसन्धान संगठन यानि इसरो में वैज्ञानिक और इंजिनियर के पद पर रहे | इन्हें लोगो के दिल में बहुत सम्मान प्राप्त है तो चलिए डॉ एपीजे अब्दुल कलाम की जीवनी और जीवन परिचय के बारे में पढ़ते है
मद्रास कॉलेज ऑफ़ टेक्नोलॉजी से अपनी पढाई पूरी करने के बाद कलाम ने डीआरडीओ को वैज्ञानिक के तौर पर ज्वाइन कर लिया और इसके बाद 1969 में वो इसरो में चले गये जो कि उसी समय नया संगठन था | उन्होंने अपने करियर की शुरुआत में ही सेना के लिए एक छोटे हेलीकाप्टर को डिजाईन किया था लेकिन फिर भी वो अपने काम से और जॉब प्रोफाइल से संतुष्ट नहीं थे जिसकी वजह से बाद में उन्होंने इसरो में काम करना शुरू कर दिया | आपको एक बात भी जान लेनी जरुरी है कि कलाम साहब ने मशहूर अन्तरिक्ष विज्ञानी विक्रम साराभाई के साथ भी काम किया हुआ है | जैसा कि हमे पता है कि वो 1969 में इसरो में चले गये थे और उन्होंने वंहा पर जिस महत्वपूर्ण मिशन पर काम किया वो था भारत का पहला सेटेलाइट लांच व्हिकल (SLV III) | जिसने बाद में जुलाई 1980 में में भारत के सेटेलाइट रोहिणी को धरती की कक्षा में स्थापित किया |
राष्ट्रपति पद पर रहने के दौरान उन्हें लोगो से इतना प्रेम मिला कि वो “ लोगो के राष्ट्रपति “ के तौर पर जाने जाने लगे थे | हालाँकि अब्दुल कलाम ने कुछ बातों पर आलोचना भी झेली है जिसमे से एक है “दया याचिका “ आपको पता होना चाहिये कि जब किसी अपराधी को मृत्युदंड दिया जाता है तो वह भारतीय संविधान के अनुच्छेद 72 तहत राष्ट्रपति के समक्ष दया याचिका लगा सकते है | ऐसे में राष्ट्रपति के पास यह अधिकार होता है कि वह चाहे तो अपराधी की सजा को कम कर सकता है , टाल सकता है | राष्ट्रपति पद पर रहते हुए कलाम ने केवल दो दया याचिका पर फैसला लिया जिसमे अगस्त 2004 में धनंजय चटर्जी नाम के बलात्कार के एक अपराधी को मौत की सजा दी गयी थी और उसकी पत्नी और माताजी की तरह से भेजी गयी दया याचिका को उन्होंने अस्वीकार कर दिया था | उन्हें भेजी गयी कुल 28 दया याचिकाओं में दूसरी याचिका वह थी जब अक्टूबर 2006 में उन्होंने खेराज राम नाम के आदमी की दया याचिका को स्वीकार कर लिया था जिस पर अपनी पत्नी , दो बच्चो और चचेरे भाई को मौत के घाट उतरने का आरोप था |
राष्ट्रपति पद से रिटायर होने के बाद कलाम देश के बहुत से कॉलेजों के विजिटिंग प्रोफ्फेसर बन गये और उन्हें समय समय पर बहुत से कॉलेज में आने को निमंत्रित किया जाता था | वो इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ स्पेस साइंस एंड टेक्नोलॉजी तिरुवनंतपूरम कॉलेज के चांसलर भी रहे | उन्होंने एक अभियान भी चलाया जिसे “ मैं क्या दे सकता हूँ “ कहा गया और यह उन्होंने साल 2011 में चलाया | उन्होंने अपने जीवन में समाज कल्याण से जुड़े कई काम किये साथ ही बहुत से छात्रों से मुलाकात कर उन्हें देश के भविष्य में सहभागी होने का सन्देश दिया |
27 जुलाई 2015 को उन्हें हार्ट अटैक आया जब वो आईआईएम शिलोंग में लेक्चर दे रहे थे | उस समय छात्रों से रूबरू होने के दौरान उन्हें हृदयाघात की शिकायत हुई और 83 साल की उम्र में एक महान वैज्ञानिक की मौत हो गयी | हालाँकि जानकर यह बताते है कि जब वो सीढियां चढ़ रहे थे तभी उन्हें काफी असहज महसूस हुआ लेकिन कुछ देर आराम के बाद वो ऑडीटोरीयम चले गये थे | लगभग 6.35 PM पर जब उन्हें छात्रों के बीच केवल पांच मिनट ही हुए थे वो गिर पड़े | हालाँकि उन्हें जल्दी ही नजदीकी अस्पताल ले जाया गया लेकिन जब वो अस्पताल पहुंचे तो पता चला कि उनमे जीवन के कोई संकेत नहीं थे | मौत की वजह
आर्यभट (४७६-५५०) प्राचीन भारत के एक महान ज्योतिषविद् और गणितज्ञ थे। इन्होंने आर्यभटीय ग्रंथ की रचना की जिसमें ज्योतिषशास्त्र के अनेक सिद्धांतों का प्रतिपादन है।[1] इसी ग्रंथ में इन्होंने अपना जन्मस्थान कुसुमपुर और जन्मकाल शक संवत् 398 लिखा है। बिहार में वर्तमान पटना का प्राचीन नाम कुसुमपुर था लेकिन आर्यभट का कुसुमपुर दक्षिण में था, यह अब लगभग सिद्ध हो चुका है।
एक अन्य मान्यता के अनुसार उनका जन्म महाराष्ट्र के अश्मक देश में हुआ था। उनके वैज्ञानिक कार्यों का समादर राजधानी में ही हो सकता था। अतः उन्होंने लम्बी यात्रा करके आधुनिक पटना के समीप कुसुमपुर में अवस्थित होकर राजसान्निध्य में अपनी रचनाएँ पूर्ण की।यद्यपि आर्यभट के जन्म के वर्ष का आर्यभटीय में स्पष्ट उल्लेख है, उनके जन्म के वास्तविक स्थान के बारे में विवाद है। कुछ मानते हैं कि वे नर्मदा और गोदावरी के मध्य स्थित क्षेत्र में पैदा हुए थे, जिसे अश्माका के रूप में जाना जाता था और वे अश्माका की पहचान मध्य भारत से करते हैं जिसमे महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश शामिल है, हालाँकि आरंभिक बौद्ध ग्रन्थ अश्माका को दक्षिण में, दक्षिणापथ या दक्खन के रूप में वर्णित करते हैं, जबकि अन्य ग्रन्थ वर्णित करते हैं कि अश्माका के लोग अलेक्जेंडर से लड़े होंगे, इस हिसाब से अश्माका को उत्तर की तरफ और आगे होना चाहिए। [2]
एक ताजा अध्ययन के अनुसार आर्यभट, केरल के चाम्रवत्तम (१०उत्तर५१, ७५पूर्व४५) के निवासी थे। अध्ययन के अनुसार अस्मका एक जैन प्रदेश था जो कि श्रवणबेलगोल के चारों तरफ फैला हुआ था और यहाँ के पत्थर के खम्बों के कारण इसका नाम अस्मका पड़ा। चाम्रवत्तम इस जैन बस्ती का हिस्सा था, इसका प्रमाण है भारतापुझा नदी जिसका नाम जैनों के पौराणिक राजा भारता के नाम पर रखा गया है। आर्यभट ने भी युगों को परिभाषित करते वक्त राजा भारता का जिक्र किया है- दसगीतिका के पांचवें छंद में राजा भारत के समय तक बीत चुके काल का वर्णन आता है। उन दिनों में कुसुमपुरा में एक प्रसिद्ध विश्वविद्यालय था जहाँ जैनों का निर्णायक प्रभाव था और आर्यभट का काम इस प्रकार कुसुमपुरा पहुँच सका और उसे पसंद भी किया गया।[3]
हालाँकि ये बात काफी हद तक निश्चित है कि वे किसी न किसी समय कुसुमपुरा उच्च शिक्षा के लिए गए थे और कुछ समय के लिए वहां रहे भी थे।[4] भास्कर I (६२९ ई.) ने कुसुमपुरा की पहचान पाटलिपुत्र (आधुनिक पटना) के रूप में की है। गुप्त साम्राज्य के अन्तिम दिनों में वे वहां रहा करते थे। यह वह समय था जिसे भारत के स्वर्णिम युग के रूप में जाना जाता है, विष्णुगुप्त के पूर्व बुद्धगुप्त और कुछ छोटे राजाओं के साम्राज्य के दौरान उत्तर पूर्व में हूणों का आक्रमण शुरू हो चुका था।