(क) स्वर्गीय ठक्कर बापा के अनुरोध पर गांधी जी ने लोगों तक पहुँचाने का कौन-सा प्रयास किया?
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Explanation:
ठक्कर बापा (Thakkar Bapa)
ठक्कर बापा (1869 -1951 )
बात तब की है जब मैं कक्षा 8 में पढता था। करीब 3 की मी दूर चिखला बांध स्थित स्कूल में हम अपने गावं सालेबर्डी के कुछ बच्चें जाया करते थे। स्कूल में आदिवासी छात्रावास था। उस छात्रावास में मैंने ठक्कर बापा की फोटो देखी थी। दीवार में गांधीजी की फोटो भी लगी थी। हमें स्कूल की पुस्तकों में गांधीजी के बारे में तो पढ़ाया जाता था। मगर, ठक्कर बापा के बारे में कोई जानकारी नहीं थी । बहरहाल, ठक्कर बापा कौन है , यह जानने की इच्छा मेरी तभी से थी। तो आइये , इस महान विभूति के बारे में कुछ जानने का प्रयास करे।
ठक्कर बापा, गांधी जी के बहुत करीब रहे थे। वे सन 1914-15 से गांधीजी के सम्पर्क में आए थे। मगर, तब भी वे अपने लोगों के लिए ज्यादा कुछ नहीं कर पाए। तमाम सरकारी प्रयासों के बावजूद, आदिवासियों की अधिसंख्य आबादी आज भी बीहड़ जंगलों में रहने अभिशप्त है। अपने देश और समाज के प्रति ठक्कर बापा की नीयत साफ झलकती है। मगर, आदिवासियों के प्रति कांग्रेस की नीतियां में जरुर संदेह नजर आता हैं।
ठक्कर बापा का नाम लेते ही ऐसे ईमानदार शख्स की तस्वीर जेहन में उभरती है, जो बड़ा ईमानदार है। जिसने एक बड़े सरकारी ओहदे से स्तीफा देकर दिन-हीन और लाचार लोगों के लिए अपनी तमाम जिंदगी न्योछावर कर दी हो। शायद, इसी को लक्ष्य कर गांधी जी ने एक उन्हें 'बापा ' कहा था। 'बापा ' अर्थात लाचार और असहायों का बाप। चाहे गुजरात का भीषण दुर्भिक्ष हो या नोआखाली के दंगे, ठक्कर बापा ने लोगोंकी जो सेवा की , नि:संदेह वह स्तुतिय है।
ठक्कर बापा आदिवासी समाज में पैदा हुए थे। वे एक खाते-पीते परिवार से संबंध रखते थे। ठक्कर बापा का नाम अमृतलाल ठक्कर था। आपका जन्म 29 नव 1869 भावनगर (सौराष्ट्र ) में हुआ था। आप की माता का नाम मुलीबाई और पिता का नाम विठलदास ठक्कर था। अमृतलाल ठक्कर के पिताजी एक व्यवसायी थे। विट्ठलदास समाज के हितेषी और स्वभाव से दयालु थे।उन्होंने अपने गरीब समाज के बच्चों के लिए भावनगर में एक छात्रावास खोला था। भावनगर में ही सन 1900 के भीषण अकाल में उन्होंने केम्प लगवा कर कई राहत कार्य चलवाए थे।