Hindi, asked by karangupta95797, 1 year ago

किसी यात्रा के दौरान हुए अनुभव पर लेख लिखे। Help me plz..

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Answered by Anonymous
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हमारे स्कूल से उत्तराँचल स्थित 'बारसू' में बड़े पहाड़ों पर जाने का अवसर मुझे मिला। माता-पिता की अनुमति और पंद्रह दिन बाद होने वाली पर्वतारोहण की यात्रा ने मेरी रातों की नींद उड़ा दी। निश्चित दिन हम स्कूल के ग्राउंड में एकत्रित हुए। मेरे साथ मेरी कक्षा के चार सहपाठी और भी थे। हम सभी कुल मिलाकर पचास बच्चे थे। निश्चित समय पर स्कूल से बस रवाना हुई। सफर रात का था और हम सुबह आठ बजे अपने गंतव्य स्थान पर पहुँचने वाले थे। रास्ते में मित्रों के साथ बातें कर, गाने सुन और न जाने क्या-क्या मखौल करते हुए हम वहाँ पहुँचे। जैसे ही मैंने बस के बाहर कदम रखा मेरी आँखें खुली की खुली रह गईं। आँखों के समक्ष बर्फ़ से ढके पहाड़ अद्वितीय लग रहे थे। हल्की मीठीठंड ने मेरे शरीर में सिहरन पैदा कर दी और मेरा मन प्रसन्नता से भर गया। चारों ओर ऐसा प्रतीत होता था। मानो प्रकृति ने अपने खजाने को बिखेर दिया हो, चारों ओर मखमल-सी बिछी घास, बड़े और ऊँचे-ऊँचे वृक्ष ऐसे प्रतीत होते थे मानो सशस्त्र सैनिक उस रम्य वाटिका के पहरेदार हैं। जहाँ भी आँखें दौड़ाओ वहीं सौंदर्य का खजाना दिखाई देता था। ये पर्वतीय क्षेत्र हमारे मैदानी जीवन के दाता हैं। वर्षा के पानी को रोकना तथा बर्फ़ बना उसे भविष्य के लिए जमा करके रखना इन्हीं पर्वतोंका काम है। लेकिन आज पर्वतीय स्थल प्रदूषण का केन्द्र बनते जा रहे हैं। अत: जनताका कर्त्तव्य बनता है कि इन पर्वतीय स्थलों की शुद्धता बनी रहने दें। ये पर्वतीयस्थल और उनका सौंदर्य मानव के जीवन दाता हैं। वहाँ स्थित कई मंदिर, सूर्योदय स्थान, दूसरे देशों के बार्डर आदि हमने देखें। तीन दिन की यात्रा के उपरांत हम सभी वापिस घर लौटे। काफी समय तक इस यात्रा का अनु
Answered by Anonymous
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Answer:हर साल हमारा पूरा परिवार गर्मियों की छुट्टी में जयपुर के बाहरी इलाके में स्थित खोल के हनुमान जी जाते हैं। इस बार भी सबने खुशी-खुशी तय किया और हर्षोल्लास के साथ सब घर से निकल पड़े। सबने वहां पहुंचकर पहाड़ पर चढ़ाई करी, भगवान के दर्शन किए और वापस नीचे आकर प्रसाद ग्रहण किया। लेकिन जब हम वहां से वापस निकले तो थोड़ी ही दूरी पर हमारी गाड़ी खराब हो गई। यह मंदिर बहुत ही पिछड़े इलाके में होने के कारण आस-पास ना कोई घर दिखाई दे रहा था और ना ही कोई दुकान दिखाई दे रहा था। सबने मिलकर गाड़ी को धक्का लगाना शुरू किया, लेकिन जून की इतनी कड़ी धूप होने के कारण थोड़ी ही देर में सब पस्त हो गए। फिर ऐसे ही रुक-रुककर हम चलते रहे। काफ़ी समय चलने के बाद हमें वहां एक झोपड़ी दिखाई दी जिसमें एक अधेड़ उम्र की महिला रहती थी। उन्होंने हमें रुकने के लिए अपनी झोपड़ी में स्थान दिया और जलपान भी कराया। जबतक हमारी गाड़ी ठीक नहीं हुई हम वहीं रुके रहे और उन्होंने भी हमारी अच्छी आव-भगत की।

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