क) समष्टिम ही व्यष्टिरहती है।व्यक्तियों से ही जाति बनती है। विश्व - प्रेम,सर्वभूत-हित-कामना परम धर्म
है, परंतु इसका अर्थ यह नहीं हो सकता कि अपने पर प्रेम न हो इस अपनेने क्या अन्याय किया है जो इसका
बहिष्कार हो
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sorry I can't understand ur language
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