Sociology, asked by kumarmukesh064188, 8 months ago

किसने संस्कृतिकरण का अप्रत्याशित समाजीकरण की प्रक्रिया कहा

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Answered by piyushsharm31
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hii mate

  • संस्कृतीकरण भारत में देखा जाने वाला विशेष तरह का सामाजिक परिवर्तन है। इसका मतलब है
  • वह प्रक्रिया जिसमें जातिव्यवस्था में निचले पायदान पर स्थित जातियाँ ऊँचा उठने का प्रयास करती हैं।
  • ऐसा करने के लिए वे उच्च या प्रभावी जातियों के रीति-रिवाज़ या प्रचलनों को अपनाती हैं।
  • यह समाजशास्त्र की पासिंग् नामक प्रक्रिया के जैसा ही है।
  • इस शब्द के प्रयोग को भारतीय समाजशास्त्री एम. एन. श्रीनिवास ने १९५० के दशक में लोकप्रिय बनाया।
  • हालाँकि इसके इससे पुराने उल्लेख भीमराव अम्बेडकर कृत कास्ट्स् इन् इन्डिया: देअर् मेकैनिज़म, जेनेसिस् एन्ड् डेवलप्मेन्ट् में मिल सकते हैं।
  • "सामाजिक सीढ़ी में ऊपर से नीचे की ओर अनुकरण के चलने" की इस प्रक्रिया के सबसे पुराने उल्लेख, एक अन्य सन्दर्भ में गैब्रियल टार्डे लिखित "द लॉज़् ऑफ़् इमिटेशन्" में मिलते हैं

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Answered by dualadmire
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Answer:

Explanation:

इस क्षेत्र में देश के प्रसिद्ध समाजशास्त्री एम एन श्रीनिवास द्वारा एक अध्ययन किया गया तथा संस्कृतिकरण की अवधारणा प्रस्तुत की गई। उन्होंने समाज के वंचित वर्ग के लिए निम्न जाति समूह का प्रयोग किया। इन्होंने 1952 में संस्कृतिकरण की अवधारणा का सर्वप्रथम प्रयोग किया।

  • जाति व्यवस्था को भारतीय सामाजिक व्यवस्था की एक अद्वितीय विशेषता माना गया है। यह भारतीय सामाजिक व्यवस्था में स्तरीकरण को प्रदर्शित करने वाला एक महत्वपूर्ण तत्व है। भारत में जातियों को समान नहीं मानते हुए एक जाति को अन्य जाति से उच्च माना गया है।
  • इस क्षेत्र में देश के प्रसिद्ध समाजशास्त्री एम एन श्रीनिवास द्वारा एक अध्ययन किया गया तथा संस्कृतिकरण की अवधारणा प्रस्तुत की गई। उन्होंने समाज के वंचित वर्ग के लिए निम्न जाति समूह का प्रयोग किया।
  • इन्होंने 1952 में संस्कृतिकरण की अवधारणा का सर्वप्रथम प्रयोग किया। इनसे पूर्व जाति व्यवस्था का अध्ययन वंशानुक्रम शुद्धता या अशुद्धता की अवधारणा पर किया जाता था। जबकि इन्होंने जाति व्यवस्था को उर्ध्वाधर गतिशीलता की अवधारणा से विवेचित करने का प्रयास किया।
  •  "एक ऐसी प्रक्रिया जिसमें निम्न जातियां उच्च जातियों विशेषकर ब्राह्मणों के रीति रिवाजों, संस्कारों विश्वासों जीवन निधि एवं अन्य सांस्कृतिक लक्षणों एवं प्रणालियों को ग्रहण करती है।" इन के अनुसार संस्कृतिकरण की प्रक्रिया अपनाने वाली जाति एक दो पीढ़ी बाद ही उच्च जाति में प्रवेश के लिए दावा करने में समर्थ हो जाती|

                                                               #SPJ3

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