किशोरों को नशीले पदार्थों को "न" कहना चाहिए क्यों?
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किशोरों को नशीले पदार्थों को “न” कहना चाहिए...
किशोरों को नशीले पदार्थों को ना कहना चाहिए क्योंकि नशा करना किसी भी दृष्टि से उचित नहीं है। नशा करना ना तो नैतिकता है, नशा करना ना समाज में अच्छा माना जाता है, और ना ही ये स्वास्थ्य के लिये अच्छा है। नशा जीवन को नष्ट करता है, जीवन को बनाता नहीं। नशीले पदार्थ शरीर को धीरे धीरे खोखला कर देते हैं और व्यक्ति अपने स्वास्थ्य को दांव पर लगा देता है। नशीले पदार्थों का सेवन करने का अर्थ है धीरे-धीरे मौत की तरफ कदम बढ़ाना। नशीले पदार्थों का सेवन एक धीमे जहर के समान है, जो धीरे-धीरे शरीर को खोखला करते हुए समय से पहले मौत के द्वार पर ले जाता है।
किशोरों और युवा वर्ग में नशे की प्रवृत्ति ज्यादा पाई जाती है। किशोर वर्ग की आयु में किशोर शानो-शौकत और दिखावे के चक्कर में अक्सर नशे की लत में पड़ जाने के खतरे अधिक होते हैं। नशे के सौदागरों द्वारा नशे को इस तरह महिमामंडित करके प्रचारित किया जाता है कि जैसे नशा करना एक शानो शौकत या स्टेटस सिंबल की बात हो। इसी भ्रम के मायाजाल में पढ़कर किशोर नशे की मुड़ जाते हैं और धीरे-धीरे नशा उनकी लत बन जाता है। जब उन्हें अकल आती है, तब तक वह नशे की गिरफ्त में इतना फंस चुके होते हैं कि वहाँ से निकलना असंभव सा हो जाता है। ऐसे में यह बेहद आवश्यक है कि समय से पहले ही किशोर और युवा सचेत हो जाएं और नशे की लत को एकदम “न” कह दें ताकि वह अपने जीवन को बर्बाद होने से बचा लें।
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