'कैशलेस इंडिया सच या सपना' इस पर
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नकदी रहित भारत की संकल्पना अभी हाल ही में प्रकाश में आई है और इसका श्रेय सही मायनों में केंद्र सरकार द्वारा अभी हाल ही में किए गए 500 रुपये और 1000 रुपये की मुद्रा के विमुद्रीकरण को जाता है। शरू-शुरू में तो लोगों को पुरानी मुद्रा को नई मुद्रा से बदलने एवं अपने ही खातों से पैसे निकालने में काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा और यही वजह है कि सरकार के इस कदम की घोर आलोचना भी हुई।
सरकार के आलोचकों के अनुसार, बिना किसी पर्याप्त व्यवस्था के इतना बड़ा कदम अचानक उठाना ठीक नहीं था। उनके अनुसार ऐसा कदम उठाने से पहले ही सारे इंतजाम कर लेने चाहिए थे। आलोचकों का कहना है कि भारत में ऑनलाइन लेन-देन कतई सुरक्षित नहीं है और ऑनलाइन माध्यम से धोखाधड़ी की घटनाएं आम हैं और इसलिए पर्याप्त सुरक्षा उपायों को अपनाए जाने की आवश्यकता है। आलोचकों ने इस पूरे प्रकरण की बेहद डरावनी तस्वीर पेश की और यह तर्क भी दिया कि कि बाजार में आवश्यक नकदी प्रवाह की अनुपलब्धता के कारण, कई लोगों की मौत हो गई और कई लोगों की नौकरी चली गई।
कैशलेस इंडिया
हालांकि सभी पुराने 500 रुपये और 1,000 रुपये की मुद्रा के विमुद्रीकरण के बाद देश में डिजिटल माध्यम द्वारा नकद लेनदेन में भारी उछाल देखा गया है। क्रेडिट / डेबिट कार्डों, मोबाइल फोन अनुप्रयोगों, एकीकृत भुगतान इंटरफेस (यूपीआई), भीम (भारत इंटरफेस फॉर मनी) एप, आधार सक्षम भुगतान प्रणाली (एईपीएस) या ई-पर्स के तहत विभिन्न अनुप्रयोगों के द्वारा नकदी रहित भारत (कैशलेस भारत) के लक्ष्य को प्राप्त करने कि दिशा में अपेक्षित प्रगति दर्ज की गई है।
निष्कर्ष: भारत जैसे विशाल देश में जहां एक बड़ी जनसंख्या गरीबी रेखा से नीचे जीवन बिताने को मजबूर है, नकदी रहित अर्थव्यवस्था (कैशलेश इकॉनमी) लागू करने में कठिनाईयां आना तो स्वभाविक है लेकिन इस दिशा में प्रयास शुरू करना जरूरी था। आज डिजिटल माध्यम से मौद्रिक लेन-देन के प्रति लोगों के मानसिकता में एक बड़ा परिवर्तन आया है। लोग जान गए हैं कि डिजिटल माध्यम भी सुरक्षित, आसान, सुविधाजनक एवं पारदर्शी है और नकदी रहित भारत में काले धन या नकली मुद्रा की अब कोई गुंजाईश नहीं है।