केशव का आचार्यत्व' पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए
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केशव या केशवदास (जन्म (अनुमानत:) 1555 विक्रमी और मृत्यु (अनुमानत:) 1618 विक्रमी) हिन्दी साहित्य के रीतिकाल की कवि-त्रयी के एक प्रमुख स्तंभ हैं। वे संस्कृत काव्यशास्त्र का सम्यक् परिचय कराने वाले हिंदी के प्राचीन आचार्य और कवि हैं।[1]
केशव का स्वचित्रण (१५७० ई)
इनका जन्म जिझौतिया ब्राह्मण कुल में हुआ था। इनके पिता का नाम काशीराम था जो ओड़छानरेश मधुकरशाह के विशेष स्नेहभाजन थे। मधुकरशाह के पुत्र महाराज इन्द्रजीत सिंह इनके मुख्य आश्रयदाता थे। वे केशव को अपना गुरु मानते थे। रसिकप्रिया के अनुसार केशव ओड़छा राज्यातर्गत तुंगारराय के निकट बेतवा नदी के किनारे स्थित ओड़छा नगर में रहते थे।[2]
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आचार्य केशवदास का जन्म सन् 1555 ई० (सं० 1612 वि०) में ओरछा के निकट एक गाँव के सनाढय ब्राह्मण परिवार में हुआ था। इनके पिता पं० काशीनाथ मिश्र ज्योतिष के प्रकाण्ड पंडित थे।केशव का जीवन राजसी ठाट बाट का था। ये स्वभाव से गम्भीर तथा स्वाभिमानी थे। अपनी प्रशंसा के एक पद पर बीरबल नें इन्हें छः हजार रुपये की हुण्डियाँ न्यौछावर कर दी थीं। एक बार इन्द्रजीत सिंह ने अपनी प्रसिद्व वेश्या रायप्रवीण को मुगल दरबार में भेजने से इन्कार कर दिया तो बादशाह ने इन्द्रजीत पर 1 लाख रुपये का जुर्माना कर दिया था। तब केशव ने मुगल दरबार में जाकर वह जुर्माना माफ करा दिया था। रायप्रवीण वेश्या होते हुए भी बड़ी चतुर और धर्मपरायण थी। उसको काव्य शिक्षा देने के लिए केशव ने अपने प्रसिद्ध ग्रन्थ 'कविप्रिया' की रचना की थी। इन्द्रजीत सिंह के बाद वीरसिंह ओरछा के राजा हुए और केशव उनके दरबारी कवि हुए। केशवदास के विवाह अथवा सन्तान के विषय में कुछ भी ज्ञात नहीं है किन्तु इतना अवश्य है कि वे बड़े रसिक थे।
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