केशव का आचार्यत्व पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिऐ
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आचार्य अत्रे का जन्म १३ अगस्त १८९८ को पुणे जिले के सासवड के निकट एक गाँव कोडित खुर्द के एक देशस्थ ब्राह्मण [१] परिवार में हुआ था। उनके पिता एक क्लर्क थे और कुछ समय के लिए सासवड नगर पालिका के सचिव भी थे और उनके चाचा एमईएस वाघिरे हाई स्कूल सासवड में शिक्षक थे। उन्होंने अपनी प्राथमिक और हाई स्कूल की शिक्षा एमईएस वाघिरे हाई स्कूल, सासवड से पूरी की। उन्होंने 1919 में फर्ग्यूसन कॉलेज से मैट्रिक किया। उन्होंने पुणे विश्वविद्यालय से कला स्नातक की पढ़ाई पूरी की। स्नातक स्तर की पढ़ाई के बाद अत्रे ने एक स्कूल शिक्षक के रूप में अपना करियर बनाया। अत्रे ने १९२८ में लंदन विश्वविद्यालय से टी.डी. (शिक्षक डिप्लोमा) किया।[2] भारत लौटने से पहले उन्होंने सिरिल बर्ट के अधीन प्रायोगिक मनोविज्ञान का अध्ययन किया और हैरो में पढ़ाया।
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केशव का आचार्यत्व
व्याख्या
- संस्कृत भाषा और ज्योतिष के विद्वान पूर्वज होने के कारण केशव दास को अपने परिवार और कुल पर गर्व था।
- ओरछा राज्य में केशवदास का शाही आश्रय था। वे दरबारी कवि थे। उन्होंने 'वीर सिंह देव चरित' और 'जहांगीर जस चंद्रिका' नामक ग्रंथों की रचना की।
- 'रामचंद्रिका' उनकी सबसे प्रसिद्ध पुस्तक है। इसके अलावा 'कविप्रिया', 'रसिक प्रिया', 'रतन बवानी', 'विज्ञान गीता' और 'नख शिख' उनके प्रसिद्ध ग्रंथ हैं। 1617 ई. में उनकी मृत्यु हो गई।
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