कृष्ण
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स्नेह और सम्मान भरे शब्द किसे अच्छे नहीं लगते। मधुर वाणी जहाँ मित्रता का विस्तार करती है,
वहीं कटु शब्द कठोर शत्रु भाव बढ़ाते हैं। दूसरों को स्नेह देना और उनका सम्मान करना सामाजिक
सफलता का एकमात्र मंत्र है। जीवन में सुख शांति और उन्नति चाहने वाले प्रत्येक महत्वाकांक्षी को सबसे
पहले यही सीख धारण करनी चाहिए। महाभारत के ज्येष्ठ पांडव युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ में
ने
लोगों के स्वागत की जिम्मेदारी ली और बदले में वे उस यज्ञ के सर्वाधिक पूज्य व्यक्ति माने गए। ईसा
मसीह, गौतम बुद्ध, महावीर, महात्मा गांधी जैसे महापुरुषों में रंचमात्र भी अभिमान नहीं था। उन्होंने सदैव
दूसरों को महत्व दिया और इस तरह से वे स्वयं महान बन गए। मान-सम्मान का मूल्य चुकाना असंभव है।
बिना मान-सम्मान के यदि अमृत भी मिले, तो वह विष बन जाता है और मानपूर्वक दिया गया विष भी
अमृत बन जाता है। विद्यार्थी जीवन का प्रथम पाठ यही है कि वह गुरु के प्रति सच्चे सम्मान का भाव
अपने हृदय में पैदा करे, अन्यथा उसकी सारी विद्या निष्फल हो जाएगी।
(क) मित्रता तथा शत्रुता के भाव पैदा होने के मूल में क्या है?
(ख) प्रत्येक महत्वाकांक्षी व्यक्ति को क्या शिक्षा लेनी चाहिए?
(ग) युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ के सर्वाधिक पूज्य व्यक्ति कौन माने गए तथा क्यों?
(घ) ईसा मसीह, गौतम बुद्ध, महावीर और महात्मा गांधी के महान बनने का क्या कारण था?
(ङ) लेखक के अनुसार विद्यार्थी जीवन का प्रथम पाठ कौन-सा है?
(च) गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक लिखिए।
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क) मधुर वाणी ख) जीवन में सुख शांति और उन्नति ग) महाभारत के जस्ट पांडव लोगों के स्वागत की जिम्मेदारी ली और बदले में उस यज्ञ के सर्वाधिक पूजा व्यक्ति माने गए घ) दूसरों को महत्व दिया
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