Hindi, asked by sumanchavan5005, 6 months ago


"कृष्ण की लीला'' के बारे मे अपने विचार लिखिए ।​

Answers

Answered by pranavkumbhar6866
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Explanation:

कृष्ण एक बहुत नटखट बच्चे हैं। वे एक बांसुरी वादक हैं और बहुत अच्छा नाचते भी हैं। वे अपने दुश्मनों के लिए भयंकर योद्धा हैं। कृष्ण एक ऐसे अवतार हैं जिनसे प्रेम करने वाले हर घर में मौजूद हैं। वे एक चतुर राजनेता और महायोगी भी हैं। वो एक सज्जन पुरुष हैं, और ऐसे अवतार हैं जो जीवन के हर रंग को अपने भीतर समाए हुए हैं। जानते हैं उनके आस-पास के लोग उन्हें किस रूप में देखते थे।

कृष्ण के बारे में दुर्योधन, शकुनी और अन्य की राय

दुर्योधन

कृष्ण को अलग-अलग लोगों ने अलग-अलग तरीकों से देखा और अनुभव किया है। इसे समझने के लिए दुर्योधन का उदाहरण लेते हैं। वह अपनी पूरी जिंदगी एक खास तरह की स्थितियों से घिरा रहा। इतिहास उसे एक ऐसे शख़्स की तरह देखता है, जो बहुत ही गुस्सैल, लालची और असुरक्षित था। वह हमेशा सब से ईर्ष्या करता रहा और सबका बुरा चाहता रहा। अपनी ईर्ष्या और लालच में उसने जो भी काम किये, वे उसके और उसके कुल के विनाश की वजह बन गए। ऐसा दुर्योधन कृष्ण के बारे में कहता है – “कृष्ण एक बहुत ही आवारा और मूढ़ व्यक्ति है, जिसके चेहरे पर हमेशा एक शरारती मुस्कान रहती है। वह खा सकता है, पी सकता है, गा सकता है, प्रेम कर सकता है, झगड़ा कर सकता है, बड़े उम्र की महिलाओं के साथ वह गप्पें मार सकता है, और छोटे बच्चों के साथ खेल भी सकता है। ऐसे में कौन कहता है कि वह ईश्वर है?”

Answered by bhagyashree2103
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Explanation:

कृष्ण एक किंवदंति..., एक कथा..., एक कहानी...। जिसके अनेक रूप और हर रूप की लीला अद्भुत। प्रेम को परिभाषित करने वाले, उसे जीने वाले इस माधव ने जिस क्षेत्र में हाथ रखा वहीं नए कीर्तिमान स्थापित किए।

माँ के लाड़ले, जिनके संपूर्ण व्यक्तित्व में मासूमियत समाई हुई है। कहते तो लोग ईश्वर का अवतार हैं, पर वे बालक हैं तो पूरे बालक। माँ से बचने के लिए कहते हैं- मैया मैंने माखन नहीं खाया। माँ से पूछते हैं- माँ वह राधा इतनी गोरी क्यों है, मैं क्यों काला हूँ? शिकायत करते हैं कि माँ मुझे दाऊ क्यों कहते हैं कि तू मेरी माँ नहीं है। 'यशोदा माँ' जिसे अपने कान्हा से कोई शिकायत नहीं है? उन्हें अपने लल्ला को कुछ नहीं बनाना, वह जैसा है उनके लिए पूरा है।

' मैया कबहुँ बढ़ैगी चोटी।

किती बेर मोहि दूध पियत भइ यह अजहूँ है छोटी।'

यहाँ तक कि मुख में पूरी पृथ्वी दिखा देने, न जाने कितने मायावियों, राक्षसों का संहार कर देने के बाद भी माँ यशोदा के लिए तो वे घुटने चलते लल्ला ही थे जिनका कभी किसी काम में कोई दोष नहीं होता। सूर के पदों में अनोखी कृष्ण बाल लीलाओं का वर्णन है। सूरदास ने बालक कृष्ण के भावों का मनोहारी चित्रण प्रस्तुत किया जिसने यशोदा के कृष्ण के प्रति वात्सल्य को अमर कर दिया। यशोदा के इस लाल की जिद भी तो उसी की तरह अनोखी थी 'माँ मुझे चाँद चाहिए।'

श्रीकृष्ण के व्यक्तित्व के अनेक पहलू हैं। वे माँ के सामने रूठने की लीलाएँ करने वाले बालकृष्ण हैं तो अर्जुन को गीता का ज्ञान देने वाले योगेश्वर कृष्ण। इस व्यक्तित्व का सर्वाधिक आकर्षक पहलू दूसरे के निर्णयों का सम्मान है। कृष्ण के मन में सबका सम्मान है। वे मानते हैं कि सभी को अपने अनुसार जीने का अधिकार है।

अपनी बहन के संबंध में लिए गए अपने दाऊ (बलराम) के उस निर्णय का उन्होंने प्रतिकार किया जब दाऊ ने यह तय कर लिया कि वह बहन सुभद्रा का विवाह अपने प्रिय शिष्य दुर्योधन के साथ करेंगे। तब कृष्ण ही ऐसा कह सकते थे कि 'स्वयंवर मेरा है न आपका, तो हम कौन होते हैं सुभद्रा के संबंध में फैसला लेने वाले।' समझाने के बाद भी जब दाऊ नहीं माने तो इतने पूर्ण कृष्ण ही हो सकते हैं कि बहन को अपने प्रेमी के साथ भागने के लिए कह सके।

राजसूय यज्ञ में पत्तल उठाने वाले, अपने रथ के घोड़ों की स्वयं सुश्रूषा करने वाले कान्हा के लिए कोई भी कर्म निषिद्ध नहीं है।

महाभारत युद्ध, जिसके नायक भी वे हैं पर क ितनी अनोखी बात है कि इस युद्ध में उन्होंने शस्त्र नहीं उठाए! इस अनूठे व्यक्तित्व को किस ओर पकड़ो कि यह अंक में समा जाए पर कोशिश हर बार अधूरी ही रह जाती है। महाभारत एक विशाल सभ्यता के नष्ट होने की कहानी है। इस घटना के अपयश को श्रीकृष्ण जैसा व्यक्तित्व ही शिरोधार्य कर सकता है।

कितनी बड़ी प्रतीक कथा है जिसमें श्रीकृष्ण ने तय किया कि अब सुधार असंभव है। जब राजभवन में ही स्त्रियों की यह स्थिति है तो बाकी समाज का क्या हाल होगा। राज-दरबार में ही राजवधू का चीरहरण सारे कथित प्रबुद्ध लोगों के सामने हो सकता है तब ऐसे समाज में कोई सुरक्षित भी नहीं है, साथ ही ऐसे समाज को खड़े रहने का कोई अधिकार भी नहीं। इसलिए उन्होंने संदेश दिया- हे अर्जुन उठा शस्त्र! तू तो मात्र निमित्त होगा!

आशा करती हूं कि यह आपके काम आयेगा।

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