कृष्ण के प्रति अपने अनन्य प्रेम को गोपियों ने किस प्रकार अभिव्यक्त किया है ?
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गोपियां श्री कृष्ण के प्रेम में पूरी तरह डूबी हुई है। वह प्रिय श्री कृष्ण के प्रेम रस में इस कदर सराबोर हैं कि उन्हें श्री कृष्ण के अलावा कुछ सूझता ही नहीं है। उनकी दशा हारिल पक्षी के समान हो गई है। हारिल पक्षी लकड़ी को सदैव अपने पंजों में दबाये रहता है, वह लकड़ी को छोड़ना ही नहीं चाहता। वह मन-वचन-कर्म से लकड़ी के प्रति अपनी आसक्ति रखता है, उसी तरह गोपियों की दशा हो गई है वह भी श्री कृष्ण के प्रेम रूपी लकड़ी को अपने मन रूपी पंजों में दवाई हुई हैं और उसे छोड़ना ही नहीं चाहती। श्री कृष्ण गोपियों को छोड़कर मथुरा चले गये हैं और गोपियों को लगता है कि उनका मन भी श्रीकृष्ण के साथ मथुरा चला गया है। वे सोते जागते ऊपर बैठे रात दिन केवल श्री कृष्ण का ही चिंतन करती रहती हैं, श्रीकृष्ण की यादों में ही डूबी रहती हैंय़ इस तरह गोपियों ने श्री कृष्ण के प्रति अपने अनन्य प्रेम को अभिव्यक्त किया है
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कृष्ण के प्रति अपने अनन्य प्रेम को गोपियों ने निम्नलिखित उदाहरणों द्वारा व्यक्त किया है –
(1) उन्होंने स्वयं की तुलना चींटियों से और श्री कृष्ण की तुलना गुड़ से की है। उनके अनुसार श्री कृष्ण उस गुड़ की भाँति हैं जिस पर चींटियाँ चिपकी रहती हैं। (गुर चाँटी ज्यौं पागी)
(2) उन्होंने स्वयं को हारिल पक्षी व श्री कृष्ण को लकड़ी की भाँति बताया है, जिस तरह हारिल पक्षी लकड़ी को नहीं छोड़ता उसी तरह उन्होंने मन, क्रम, वचन से श्री कृष्ण की प्रेम रुपी लकड़ी को दृढ़तापूर्वक पकड़ लिया है। (हमारैं हारिल की लकरी, मन क्रम वचन नंद-नंदन उर, यह दृढ़ करि पकरी)
(3) वह श्री कृष्ण के प्रेम में रात-दिन, सोते-जागते सिर्फ़ श्री कृष्ण का नाम ही रटती रहती है। (जागत सोवत स्वप्न दिवस-निसि, कान्ह-कान्ह जक री।)