कृष्ण ने अपने किन किन भक्तों को कैसे रख सकते हैं
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नई दिल्ली। ईश्वर शब्द एक ऐसी परमशक्ति के प्रति संबोधन है, जो हमारी आत्मा की शक्ति को पोषित करती है। संसार के विभिन्न धर्मों में ईश्वर को अनेक नामों से जाना जाता है। उसे चाहे जिस नाम से पुकारें, पर वह सर्वोच्च सत्ता है, जो इस संसार और इसके रहवासियों अर्थात हमें ना सिर्फ पोषित करती है, बल्कि हर संकट से हमारी रक्षा भी करती है। ईश्वर पर अटूट विश्वास रखने वाला व्यक्ति जीवन की कठिनाइयों को भी धैर्य से पार कर लेता है क्योंकि वह जानता है कि आज नहीं तो कल, ईश्वर उसकी रक्षा करेंगे ही। और विश्वास मानिए, ईश्वर अपने भक्त की चिंता उससे भी अधिक करते हैं।

ईश्वर किस तरह अपने भक्त को कष्टों से सहेज लेते हैं, महाभारत के एक अद्भुत प्रसंग से जानते हैं-
महाभारत का युद्ध प्रारंभ होने से पहले अर्जुन ने श्री कृष्ण से अपना सारथी बनने की प्रार्थना की थी और उन्होंने सहर्ष सारथी बनना स्वीकार भी कर लिया था। इसी क्रम में जब युद्ध प्रारंभ होने वाला था और अर्जुन को रथ पर सवार होकर युद्ध भूमि में जाना था, तब श्री कृष्ण ने उनसे कहा कि रथ पर चढ़ने से पहले हनुमान जी का आवाहन करो और उनसे रथ की ध्वजा पर विराजने और रक्षा करने की विनती करो। अर्जुन ने तुरंत ही हनुमान जी से प्रार्थना की और हनुमान जी ने रक्षा का वचन दिया। इसके बाद ही पहले श्री कृष्ण और फिर अर्जुन रथ पर आसीन हुए। सभी जानते हैं कि युद्ध में पांडव विजयी हुए और कौरवों का समूल नाश हो गया और इस सफलता का श्रेय भी मुख्य पात्र अर्जुन को मिला।
श्री कृष्ण भगवान विष्णु के अवतार थे
इस विजय का मुख्य रहस्य अर्जुन के रथ में समाया था। वास्तव में श्री कृष्ण भगवान विष्णु के अवतार थे और उनके साथ शेषनाग हर युग में अवतरित होकर हर काम में सहयोगी रहते रहे हैं। श्री कृष्ण के सारथी पद संभालते ही उनके हर अवतार के परम सखा शेषनाग ने हमेशा की तरह अपनी भूमिका संभाल ली थी। शेषनाग अदृश्य रूप में रथ के पीछे विराजित थे और पृष्ठ भाग की रक्षा का भार उन्होंने संभाल रखा था। आकाश मार्ग से होने वाले आक्रमण से रथ की रक्षा के लिए श्री कृष्ण ने हनुमान जी को आमंत्रित कर लिया था