कृष्ण और सुदामा की मित्रता की तरह आपका कोई मित्र वर्षों बाद मिले तो आप कैसा व्यवहार उसके साथ करेंगे संक्षेप में लिखिए
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Explanation
भारतीय परंपरा में हमेशा से ही मित्रता का महत्व रहा है। हमारे जीवन में माता- पिता और गुरू के बाद मित्र को स्थान दिया गया है। लेकिन जब भी मित्रता की बात होती है तो लोग द्वापर युग वाली कृष्ण-सुदामा की मित्रता की किसाल देना नहीं भूलते।
भारतीय परंपरा में हमेशा से ही मित्रता का महत्व रहा है। हमारे जीवन में माता- पिता और गुरू के बाद मित्र को स्थान दिया गया है। लेकिन जब भी मित्रता की बात होती है तो लोग द्वापर युग वाली कृष्ण-सुदामा की मित्रता की किसाल देना नहीं भूलते।कृष्ण और सुदामा की मित्रता को इतनी शोहरत क्यों मिली इसे एक प्रचलित कहानी के माध्यम से समझा जा सकता है-
भारतीय परंपरा में हमेशा से ही मित्रता का महत्व रहा है। हमारे जीवन में माता- पिता और गुरू के बाद मित्र को स्थान दिया गया है। लेकिन जब भी मित्रता की बात होती है तो लोग द्वापर युग वाली कृष्ण-सुदामा की मित्रता की किसाल देना नहीं भूलते।कृष्ण और सुदामा की मित्रता को इतनी शोहरत क्यों मिली इसे एक प्रचलित कहानी के माध्यम से समझा जा सकता है-बेहद गरीब थे सुदामा-
भारतीय परंपरा में हमेशा से ही मित्रता का महत्व रहा है। हमारे जीवन में माता- पिता और गुरू के बाद मित्र को स्थान दिया गया है। लेकिन जब भी मित्रता की बात होती है तो लोग द्वापर युग वाली कृष्ण-सुदामा की मित्रता की किसाल देना नहीं भूलते।कृष्ण और सुदामा की मित्रता को इतनी शोहरत क्यों मिली इसे एक प्रचलित कहानी के माध्यम से समझा जा सकता है-बेहद गरीब थे सुदामा-भगवान कृष्ण के सहपाठी रहे सुदामा एक बहुत ही गरीब ब्राह्मण परिवा से थे। उनके सामने हालात ऐसे थे बच्चों को पेट भरना भी मुश्किल हो गया था। गरीबी से तंग आकर एक दिन सुदामा की पत्नी ने उनसे कहा कि वे खुद भूखे रह सकते हैं लेकिन बच्चों को भूखा नहीं देख सकते। ऐसे कहते -कहते उनकी आंखों में आंसू आ गए।