काष्ठफलके मञ्जूषा अस्ति। अद्य मजूषाया चाकगुलिका: न सन्ति। अध्यापिका आदिशत सुनीरा गच्छतु चाकगुलिकाः च कार्यालयात् आनयतु। अध्यापिकाया: संस्कृत पठन्ति। सुनीरा चाकगुलिका: आनीय फलके स्थापयति। अध्यापिका चाकगुलिकया श्यामपट्टे लिखति। बालिका: यदा ता: कोलाहल कर्वन्ति, अध्यापिका बालिका: वदति-- अलं कोलाहलेन,तृष्णी तिष्ठता तथापि सुनीरा सुनीता च परस्परं वदतः। तदा अध्यापिका वदति- युवाम् किमर्थं वदथ:? सा सुनीराया: अभ्यासपुस्तिकां अपूर्णम् प्राप्त, अत: सा क्रोधयति। तदा सुनीरा अध्यापिका प्रतिवदति- तत् क्षम्यताम् आय, पुनः एव न करिष्यामि। तदा-सुनीरा अवधानेन कार्य करोति। अध्यापिका सुनीरां न दण्डयति।
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Explanation:
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Explanation:
मेज पर एक पिटारी (बॉक्स) है उस पिटारी में चाक नही है।
अध्यापिका सुनीरा को आदेश देती है जाओ कार्यालय से चाक ले आओ। सुनीता कार्यालय से चाक ले आती है। मेज पर रखती है। शिक्षिका चाक से ब्लैक बोर्ड पर लिखती हैं। वह बालिकाओं को संस्कृत पढ़ाती है। बालिकाएं अध्यापिका से संस्कृत पढ़ती हैं।
तभी शोर करती हैं। शिक्षिका बालिकाओं से कहती हैं शोर बंद करो चुपचाप बैठो।
तब भी सुनीता और सुनीरा आपस मे बात करती हैं । तब अध्यापिका कहती हैं तुम दोनो क्या बात कर रही हो तो सुनीरा किताब देखती है।
वह कहती हैं हे सुनिरा क्या तुम्हारा कार्य अपूर्ण है।
सुनीरा उत्तर देती है माफ़ कीजिए फिर से ऐसा नही होगा ।
तब सुनीरा ध्यान से कार्य करती है।
अध्यापिका सुनीरा को दंड नहीं देती ।उसका कार्य पूर्ण हो जाता है।
जीवन में अनुशासन आवश्यक है।