कृषक गान कविता की प्रथम 4 पंक्तियों का भावार्थ
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प्रथम 4 पंक्तियों का भावार्थ :
हाथ में संतोष ………………………… गान कर लूँ।।
कृषक गान कविता की कवि दिनेश भारद्वाज जी है l उन्होंने कहा है कि किसान की परेशानी की कोई सीमा नहीं है। लेकिन उसके पास संतोष रूपी धन है। वह उसी संतुष्टि के साथ अपना जीवन जी रहे हैं। सारी दुनिया में चाहे कोई भी वसंत आए, किसान के जीवन में हमेशा शरद ऋतु आती है। यानी मौसम बदलते हैं, लोगों के हालात बदलते हैं, लेकिन किसान के भाग्य में सिर्फ कमी है। इतनी दयनीय दशा होते हुए भी किसी से कुछ मांगने का मन नहीं करता। किसान को भी अपनी दयनीय स्थिति पर गर्व है। कवि कहता है कि मैं ऐसे व्यक्ति पर गर्व करना चाहता हूँ। मैं किसान के गीत गाना चाहता हूं।
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