कृषक गान कविता की प्रथम चार पंक्तीयों का भावार्थ लिखिए
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कृषक के अभवो की कोई सीमा नहि हैं परंतु वह संतोष रुपी धन के सहरे अपना जिवन व्यतित कर रहा हैं पूरे संसार मैं कैसा भी वसंत आये कृषक के जीवन मैं सदैव पतजड ही बना रहता हैं
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