किताबें झाँकती हैं बंद अलमारी के शीशों से, बड़ी हसरत से तकती हैं | महीनों अब मुलाकातें नहीं होतीं, जो शामें उनकी सोहबत में कटा करती थीं अब अक्सर ..... (भावार्थ लिखिए
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किताबे यह कहना चाहती हे की तुम हमे पढो, तुम हमे इन अलमारियोसे बहार निकालो ,हमाँरा दम घुटता हें यहा,लेखक कहता हे की वह हमे तकती रहती हे,वह यह चाहती हे की हम उन्हे पढे जबसे computar, labtob, mobail आहे हे तबसे हम 'किताब पढना भुल गये हे|
हम अब किताबोके पास फहिरकते भी नही तो उन्हे बहुत दुःख होता हे,जो वक्त हम घंटो 'किताब पडने लगाते थे वह अब मोबाईल जसे gagest पे लगाते हे|
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