किताबें
किताबें करती हैं बातें बीते जमानों की।
दुनिया की, इंसानों की
आज की, कल की
एक-एक पल की।
खुशियों की, ग़मों की
फूलों की, बमों की
जीत की, हार की
प्यार की, मार की।
क्या तुम नहीं सुनोगे
इन किताबों की बातें?
किताबें, कुछ कहना चाहती हैं।
तुम्हारे पास रहना चाहती हैं।
किताबों में चिड़ियाँ चहचहाती हैं।
किताबों में खेतियाँ लहलहाती हैं। किताबों में झरने गुनगुनाते हैं,
परियों के किस्से सुनाते हैं। किताबों में रॉकेट का राज है।
किताबों में साइंस की आवाज है।
किताबों का कितना बड़ा संसार है।
किताबों में ज्ञान की भरमार है।
क्या तुम इस संसार में नहीं जाना चाहोगे?
किताबें, कुछ कहना चाहती हैं।
तुम्हारे पास रहना चाहती हैं।
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शफदर हासमी साहब की कविता ‘किताबें करती हैं बातें’ बच्चों को पढ़कर सुनाई। इसके बाद बच्चों से किताब और दोस्ती के रिश्ते पर बात हो रही थी। बच्चे किताबों के साथ दोस्ती वाले रिश्ते को पढ़ने की क्षमता के विकास और किताबों तक पहुंचने के अवसर के रूप में देख रहे थे।
उनका कहना था कि किताबों के साथ ज्यादा वक्त बिताने से हमारी पढ़ाई और अच्छी हो जाएगी। आखिर में बच्चों ने कहा, “किताबें हमारी दोस्त हैं। उनसे दोस्ती करने के लिए हमें पढ़ना सीखना होगा। उनके साथ ज्यादा वक्त बिताना होगा।” अब पढ़िए शफ़दर हाशमी साहब की कविता।
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