किताबे कविता का भवार्थ
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प्रस्तुत कविता 'किताबें' में कवि 'गुलजार' ने वर्तमान में किताबों की हो रही दयनीय दशा का चित्रण किया है। कवि कहते हैं कि आज पुस्तकें मात्र बंद अलमारियों की शोभा बनकर रह गई हैं। किताबें बड़ी उम्मीद से हमारी ओर देखती है कि कोई तो आएगा और उसे पढ़ेगा।
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