किताबों से जो जाती राब्ता था, कट गया है ........
आनंदपूर्वक रसास्वादन
मुद्दों के आधार पर
कीजिए।
विषय
उत
कभी सीने पे रख के लेट जाते थे
कभी गोदी में लेते थे
कभी घुटनों को अपने रिहल की सूरत बना कर
नीम-सजदे में पढ़ा करते थे, छूते थे जबीं से
वो सारा इल्म तो मिलता रहेगा आइंदा भी
पठनीय
पाठ्यपुस्तक की किसी एक
कविता का मुखर एवं मौन
वाचन कीजिए।
मगर वो जो किताबों में मिला करते थे सूखे फूल
और महके हुए रुक्के
किताबें गिरने, उठाने के बहाने रिश्ते बनते थे
उनका क्या होगा ? वो शायद अब नहीं होंगे !!
antim 4 panchiyon ka bhavarth likhiye
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Explanation:
ज़माने में इंसान की राब्ता किताबों से छूटता जा रहा है। किताबों के कई विकल्प वक्त के साथ-साथ इजाद कर लिये गए लेकिन जो बात किताबों में है वो किसी और चीज़ में नहीं। लाइक्स, शेयर और कॉमेंट की इस दौड़ में पढ़ने का मतलब दरअसल स्क्रीन देखना हो गया है, वो चाहे मोबाइल की स्क्रीन हो या कंप्यूटर की।
बीते कुछ सालों में एक आम इंसान का लाइब्रेरी से रिश्ता कमज़ोर हुआ है और इसकी सबसे बड़ी वजह मोबाइल क्रांति है। विश्व पुस्तक दिवस के मौके पर गुलज़ार की एक नज़्म बड़ी शिद्दत से याद आती है।
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