कृतृ, कर्म, भाव वाच्य मे अंतर ऊधारन सहित।
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क्रिया के जिस रूप में करता प्रधान हो ,उसे कृत वाचक कहते हैं । क्रिया के लिंग तथा वचन करता के लिंग वचन के अनुसार होते हैं। यहां क्रिया सकर्मक और अकर्मक दोनों रूपों में हो सकती है ; जैसे - नीता रो रही है । जबकि क्रिया के जिस रूप में कर्म प्रधान हो , उसे कर्मवाच्य कहते हैं। इसमें क्रिया का लिंग व वचन कर्म के अनुसार होता है। इसमें केवल सकर्मक क्रिया का प्रयोग होता है ; जैसे - बंदर से केला खाया जाता है। जबकि क्रिया के जिस रूप में भाव ही मुख्य हो , उसे भावाचे कहते हैं। भाव वाच्य में क्रिया सदा एकवचन पुलिंग में रहती है ; जैसे अब पढ़ा जाए ।
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