कौटिल्य ने राज्य विज्ञान के लिए
शब्द का प्रयोग किया था।
शमत्रा
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प्रजा के सुख में राजा का सुख है ।” कौटिल्य के अनुसार राजा और राज्य में कोई भेदभाव नहीं है । वह राजा और राज्य को एक दूसरे का पर्यायवाची मानते हैं । कौटिल्य के अनुसार राज्य एक जीवित प्राणी की तरह है, जिस प्रकार एक सजीव प्राणी का लगातार विकास होता है, उसी प्रकार राज्य का और उसके अंग का भी लगातार विकास होता रहता है ।
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