कुंती ने अपना अतिथि धर्म कैसे निभाया
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Explanation:
कुंती महाभारत में वर्णित पांडव जो कि पाँच थे, में से बड़े तीन की माता थीं। कुन्ती पंच-कन्याओं में से एक हैं जिन्हें चिर-कुमारी कहा जाता है। कुन्ती यदुवंशी राजा शूरसेन की पुत्री , वसुदेव की बहन और भगवान श्रीकृष्ण की बुआ थी। नागवंशी महाराज कुन्तिभोज ने कुन्ती को गोद लिया था। ये हस्तिनापुर के नरेश महाराज पांडु की पहली पत्नी थीं। कुंती का एक नाम पृथा भी था।
कुन्ती
कुन्ती और पाण्डु
कुन्ती और पाण्डु
हिंदू पौराणिक कथाओं के पात्र
नाम:
कुन्ती
अन्य नाम:
चिरकुमारी , प्रथा
संदर्भ ग्रंथ:
महाभारत
राजवंश:
कुन्तिभोज
माता-पिता:
{{{माता और पिता}}}
जीवनसाथी:
पाण्डु
संतान:
कर्ण युधिष्ठिर भीम अर्जुन
भगवान सूर्य कुन्ती को आशीर्वाद देते हुए
कुंती को महर्षि दुर्वासा ने एक वरदान दिया था जिसमें कुंती किसी भी देवता का आवाहन कर सकती थी और उन देवताओं से संतान प्राप्त कर सकती थी। पाण्डु एवं कुंती ने इस वरदान का प्रयोग किया एवं धर्मराज, वायु एवं इंद्र देवता का आवाहन किया। अर्जुन तीसरे पुत्र थे जो देवताओं के राजा इंद्र से हुए।
युधिष्ठर यमराज और कुंती के पुत्र थे। भीम वायु और कुंती के पुत्र थे। अर्जुन इन्द्र और कुंती के पुत्र थे। सहदेव और नकुल अश्विनीकुमार और माद्री के पुत्र थे।कुंती ने विवाह के पहले सूर्य देव का आवाहन किया था।सूर्य से कुंती को पुत्र प्राप्त हुआ।जिसका नाम कर्ण था। कर्ण को कुन्ती ने लोक लाज के कारण नदी मे बहा दिया था ।
कुन्ती एक तपस्वी स्त्री थी, ये हस्तिनापुर राज्य की महारानी और इन्द्रप्रस्थ साम्राज्य की राजमाता थीं । युध्द के बाद गांधारी और धृतराष्ट्र के साथ ये कुंती भी उनकी सेवा के लिए वन में चली गयी क्योंकि वे दोनों नेत्रहीन थे।