कृति ३ः सरल अर्थ (१) निम्नलिखित पद्यांश का सरल अर्थ लिखिए। पंचवटी की... होता है। (i) उत्तर:
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ऊो, तुम हौ अति बड़भागी। अपरस रहत सेनह तगा तै, नाहिन मन अनुरागी। पुरइनि पात रहत जल भीतर, ता रस देह न त्यागी। ज्यौं जल माहँ तेल की गागरी बूँद न ताकौ लागी। प्रीति-नदी मैं पाऊँ न बोरयो, दृष्टि न रूप परागी। 'सूरदास' अबला हम भोरी, गुर चाँटी ज्यौं पागी।।
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