कृत्वा हिमवन्त
चन्दिरलोक प्रविशाम
11211
शुक्रश्चन्द्रः सूर्यो गुरुरिति
ग्रहान् हि सर्वान् गणयाम
विविधाः सुन्दरताराश्चित्वा
मौक्तिकहार
रचयाम 130
अम्बुदमालाम् अम्बरभूषाम
आदायैव हि प्रतियाम ।
दुःखित-पीडित-कृषिकजनाना
गृहेषु हर्ष जनयाम 114।।
डॉ. विश्वास:
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