'कुटिया में राजभवन' कविता का आशय
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कुटिया में राजभवन' इस कविता का आशय है- सीता जी वन में भी राजसुख भोगती हैं। श्रीरामचंद्र जी स्वयं सीता जी के साथ-साथ रहते हैं। देवर लक्ष्मण मंत्री के रूप में कार्य कर रहे हैं। यहाँ धन और राज-वैभव का कोई मूल्य नहीं है।
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कुटिया में राजभवन' इस कविता का आशय है- सीता जी वन में भी राजसुख भोगती हैं। श्रीरामचंद्र जी स्वयं सीता जी के साथ-साथ रहते हैं। देवर लक्ष्मण मंत्री के रूप में कार्य कर रहे हैं। यहाँ धन और राज-वैभव का कोई मूल्य नहीं है।
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