कितन अच्छा हो अगर , जले दीप से दीप
से संभव तब हो सके, भये दीप समीप
एसका भावार्थ लिखिये
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कितना अच्छा हो अगर, जले दीप से दीप, ये संभव तब हो सके, आएँ दीप समीप।। इन दोहों में जहीर कुरैशी जी ने समाज में चल रहे ऊँच-नीच के भेदभाव को मिटाने, तथा स्वार्थ, नफरत के दुष्परिणामों को बताते हुए इनको छोड़ने के लिए प्रेरित किया है। कुरैशी जी का कहना है कि अनेकता में एकता ही अपने देश की शान है।
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