कितना भी भ्रष्ट जमाना हो,
व समझाया है।
बोलने चाहिए
जा सकता है।
था स्नेह द्वारा
जो गिरे हुए को उठा सके
इससे प्यारा कुछ जतन नहीं,
दे प्यार उठा पाए न जिसे
इतना गहरा कुछ पतन नहीं।
देखे से प्यारभरी आँख
दुस्साहस पीले होते हैं?
हर एक धृष्टता के कपोल
आँसू से गीले होते हैं।
तो सख्त बात से नहीं
स्नेह से काम जरा लेकर देखो.
अपने अंतर का नेह भला
देकर उसको तो तुम देखो
है शपथ तुम्हें करुणाकर की
है शपथ तुम्हें उस नंगे की
जो भीख स्नेह की मांग-मांग
मर गया कि उस भिखमंगे की!
बस, सख्त बात से नहीं
स्नेह से काम जरा लेकर देखो.
अपने अंतर का नेह
उसको तो देकर तुम देखो
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