कितना प्रामाणिक था उसका दुख लड़की को दान में देते वक्त जैसे वही उसकी अंतिम पूंजी हो
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कितना प्रामाणिक था उसका दुख
लड़की को दान में देते वक्त
जैसे वही उसकी अंतिम पूंजी हो
संदर्भ : यह पद्यांश ‘ऋतुराज’ द्वारा रचित कविता ‘कन्यादान’ से संबंधित है। इस पद्यांश के माध्यम से कवि ने एक माँ के अपनी बेटी के प्रति भावों को प्रदर्शित किया है।
व्याख्या : कवि कहता है कि माँ ने अपने जीवन में जिस तरह के कष्टों को सहा था, दुखों का सामना किया था। उन सभी कष्ट और दुखों के बारे में अपनी पुत्री को उसके विवाह के समय कन्यादान करते समय समझाना और उनके बारे में बताना उसके लिए बेहद आवश्यकता है, ताकि उसकी पुत्री अपने भावी जीवन में आने वाली कठिनाइयों से सचेत हो सके। अपनी पुत्री को देने के लिए उसके पास यही अंतिम संपत्ति बची थी। यह उसके पूरे जीवन के अनुभवों का निचोड़ था, उसकी पूँजी थी। इन अनुभवों रूपी पूँजी को अपनी पुत्री को देना चाहती थी ताकि उसकी पुत्री आने वाले जीवन अपने विवाहित जीवन में आने वाली कठिनाइयों का सामना दृढ़तापूर्वक पूरा कर सके।
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