Hindi, asked by pritishah9867417088, 2 months ago

कितनी सुंदरता बिखरी प्राकृतिक जगत में, ईश्वर, टपक रही गिरि-शिखरों से झर, लोट रही घाटी में लिपटी धूप छाँह में नि:स्वर ! meaning​

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Answered by bhatiamona
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कितनी सुंदरता बिखरी प्राकृतिक जगत में, ईश्वर, टपक रही गिरि-शिखरों से झर, लोट रही घाटी में लिपटी धूप छाँह में नि:स्वर !

यह पंक्तियाँ सुमित्रानंदन पंत जी द्वारा लिखी गई है | कवि कहते है कि ईश्वर की इस सुंदर प्रकति में चारों तरफ सुंदरता बिखरी है | पर्वतों पर शिखरों पर घाटियों में कहीं धुप है , कहीं छाया है , हवाओं से जमीन में फैली घास हंसती हुई प्रतीत होती है | हवा के बहने के साथ वनों से पत्तों के मधुर स्वर गूंजते है | सुंदर खिले हुए फूल आँखों को शीतलता प्रदान करते है |

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