History, asked by isharoy8940, 2 months ago

कुदाल और हल्के बीच की लड़ाई 1 लंबी थी 18 वी शताब्दी के दौरान राजमहल पहाड़ियों के संथाल और पहाड़ियों के संदर्भ में कथन को प्रस्थापित करें​

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Answered by ratanlaljanagal1973
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Answer:

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Explanation:

वर्ष 1855 में बंगाल के मुर्शिदाबाद तथा बिहार के भागलपुर जिलों में स्थानीय जमीनदार, महाजन और अंग्रेज कर्मचारियों के अन्याय अत्याचार के शिकार पहाड़िया जनता ने एकबद्ध होकर उनके विरुद्ध विद्रोह का बिगुल फूँक दिया था। इसे पहाड़िया विद्रोह या पहाड़िया जगड़ा कहते हैं। पहाड़िया भाषा में 'जगड़ा शब्द का शाब्दिक अर्थ है-'विद्रोह'। यह अंग्रेजों के विरुद्ध प्रथम सशस्त्र जनसंग्राम था। जावरा पहाड़िया उर्फ तिलका मांझी , भाइयों ने नेतृत्व किया था शाम टुडू (परगना) के मार्गदर्शन में किया। 1793 में लॉर्ड कार्नवालिस द्वारा आरम्भ किए गए स्थाई बन्दोबस्त के कारण जनता के ऊपर बढ़े हुए अत्याचार इस विद्रोह का एक प्रमुख कारण था। सन 1855 में अंग्रेज कैप्टन अलेक्ज़ेंडर ने विद्रोह का दामन कर दिया।

उन्नीसवीं शताब्दी के प्रारंभिक वर्षों में, बुकानन ने राजमहल की पहाड़ियों का दौरा किया था। उसके वर्णन के अनुसार ये पहाड़ियाँ अभेद्य लगती थीं। यह एक ऐसा खतरनाक इलाका था जहाँ बहुत कम यात्री जाने की हिम्मत करते थे। बुकानन जहाँ कहीं भी गया, वहाँ उसने निवासियों के व्यवहार को शत्रुतापूर्ण पाया। वे लोग कंपनी के अधिकारियों के प्रति आशंकित थे और उनसे बातचीत करने को तैयार नहीं थे। कई उदाहरणों में तो वे अपने घर-बार और गाँव छोड़कर भाग गए थे। ये पहाड़ी लोग कौन थे? वे बुकानन के दौरे के प्रति इतने आशंकित क्यों थे? बुकानन की पत्रिका में हमें उन्नीसवीं शताब्दी के प्रारंभिक वर्षों में इन लोगों की जो तरस खाने वाली हालत थी उसकी झलक मिलती है। उन स्थानों के बारे में उसने डायरी लिखी थी, जहाँ-जहाँ उसने भ्रमण किया था, लोगों से मुलाकात की थी और उनके रीति-रिवाजों को देखा था।

संथाल 1780 के दशक के आस-पास बंगाल में आने लगे थे। जमींदार लोग खेती के लिए नयी भूमि तैयार करने और खेती का विस्तार करने के लिए उन्हें भाड़े पर रखते थे और ब्रिटिश अधिकारियों ने उन्हें जंगल महालों में बसने का निमंत्रण दिया। जब ब्रिटिश लोग पहाड़ियों को अपने बस में करके स्थायी कॄषि के लिए एक स्थान पर बसाने में असफल रहे तो उनका ध्यान संथालों की ओर गया। पहाड़िया लोग जंगल काटने के लिए हल को हाथ लगाने को तैयार नहीं थे और अब भी उपद्रवी व्यवहार करते थे। जबकि, इसके विपरीत, संथाल आदर्श बाशिंदे प्रतीत हुए, क्योंकि उन्हें जंगलों का सफ़ाया करने में कोई हिचक नहीं थी और वे भूमि को पूरी ताकत लगाकर जोतते थे।

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