"कैदी और कोकिला' में कवि ने कौन-सा गहना पहना हुआ था
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भावार्थ - प्रस्तुत पंक्तियाँ कवि 'माखनलाल चतुर्वेदी' जी के द्वारा रचित कविता 'कैदी और कोकिला' से ली गई हैं | इन पंक्तियों के माध्यम से कवि कहते हैं कि मैंने ब्रिटिश हुकूमत की यातना सह रहे भारतीय कैदियों में कोयल की विद्रोह भरी आवाज़ के माध्यम से बूढ़ी हड्डियों में भी जान फूंकने का काम कर दि
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कैदी और कोकिला में कवि ने हथकड़ियां का गहना पहना हुआ है।
- कैदी और कोकिला कविता के कवि है माखनलाल चतुर्वेदी। यह कविता उन्होंने जेल में लिखी थी। उस समय हमारा देश अंग्रेजी शासन का गुलाम था। वे स्वयं भी एक स्वतंत्रता सेनानी थे इसलिए वे कई बार जेल जा चुके थे। जेल जाने कर है उन्हें लता चला कि अंग्रेज भारतीय कैदियों साथ कितना बुरा व्यवहार करते है। उनपर तरह तरह से अत्याचार किया जाता है, भूखा व प्यासा रखा जाता है।
- जेल में उनकी नजर एक कोयल पर पड़ी । वह कोयल गा रही थी तो कवि को लगा कि यह कोकिला हमें प्रेरणा देने आई है तथा कोई महत्वपूर्ण सदेश देने आई है। कवि को कोयल की आवाज में दर्द का अनुभव हुआ , ऐसा प्रतीत हुआ जैसे कोयल को कैदियों की दशा देखकर पीड़ा ही रही हो।
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