Hindi, asked by saishreshitha, 9 months ago

क. देश को सँवारने के लिए क्या-क्या करने की आवश्यकता है?​

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Answered by himanshuchundawat
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Answer:

आज के समय में हम सबको अपने देश की भलाई करने के लिए आगे आना ही पडेगा - और कोई विकल्प नहीं है - आज के समय में हम सब अपने देश की मदद कर सकते हैं और तबाही से बचा सकते हैं. मुसीबतें इंसान की परीक्षा लेती है और इंसान के अंदर छुपे महामानव को जगाती है. दुनिया में जितने भी नवाचार हुए हैं वे किसी न किसी चुनौती के परिणामस्वरूप सामने आते हैं. जितनी बड़ी चुनौतियां आती है उतने की शानदार नवाचार निकल कर आते हैं. जिस जिस व्यक्ति ने सकारात्मकता से चुनौतियां झेली हैं उन्होंने नवाचार कर के सफलता हासिल की है. ये सर्व-विदित है की आज के इस समय में छोटे उद्योगों और स्वरोजगार करने वाले लोगों को बहुत बड़ी मुसीबतों का सामना करना पड़ रहा है. बड़ी बड़ी कम्पनियाँ इ-कॉमर्स के जरिये अपने काम कर रही है. लेकिन छोटे उद्योगों को कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा है. बड़े उद्योगों को उद्योगों के संगठनों का भी सहारा मिल जाता है. उनकी आवाज को सरकार तक पहुंचाया जाता है और उनकी परेशानियों को दूर करने के लिए सरकार को भी राहत के उपाय करने पड़ते हैं. लेकिन सूक्ष्म उद्यमियों की आवाज उठाने वाला कौन है? हर दूसरे दिन लोग और ज्यादा परेशान हो रहे हैं. कहने को पढ़ाई से लोगों की चेतना का जागरण होना चाहिए - लेकिन ऐसा नहीं है - भारत में तो जो भी व्यक्ति पढ़ाई कर लेते हैं वे ब्रांडेड सामान खरीदने लग जाते हैं और भूल जाते हैं की उनके खरीदने से ही कई लोगों के घर चलते हैं (कई लोग तो सिर्फ पढ़ाई करने के बाद बिना ब्रांड के स्थानीय उत्पाद खरीदने में भी हीन महसूस करने लग जाते हैं - यानी उनकी चेतना और समझ पर पर्दा पड़ जाता है और वे आँख मीच कर विदेशी ब्रांड के उत्पाद खरीदते हैं और कई बार तो अपने ही अनपढ़ चाचा - ताऊ को सम्मान देना तक छोड़ देते हैं - है न कितने शर्म की बात). जहाँ - जहाँ पढाई फ़ैल रही है, जहाँ - जहाँ पर समृद्धि बढ़ रही है वहां वहां पर कुटीर उद्योग तबाह हो रहे हैं. अफोसस ये है की पढ़ाई में लोगों के मन में अपने देशवासियों के प्रति संवेदना और सहयोग करने की भावना को पैदा करने और चेतना को जगाने के लिए कोई प्रयास भी नहीं किया जाता है. सरकारों को भी बड़ी कंपनियों से मदद मिलती रहती है अतः वे बड़ी कंपनियों के हितों को तो ध्यान में रखती हैं लेकिन छोटे लोगों को नजरअंदाज कर देती है. अगर सरकारें चाहें तो सूक्ष्म उद्यमियों को सहारा दे कर देश की सारी आर्थिक समस्याओं को मिटा सकते हैं लेकिन अफोसस ये है की देश के ज्यादातर अर्थशाष्त्री और आर्थिक सलाहकार विदेशी ज्ञान से काम चलाते हैं अतः वे विकास के उसी मॉडल पर चलते हैं जो पश्चिमी देशों में लागू हुआ है. भारत के सूक्ष्म उद्यमियों या ग्रामीण उद्यमियों और किसानों को केंद्र में रख कर दुनिया की पहली विकास नीति बनाने का सुझाव कौन दे? आज कोरोना की मुसीबतों ने सूक्ष्म उद्यमियों के लिए विकराल मुश्किलें खड़ी कर दी है. लेकिन इस समय में सरकार से अपेक्षा रखने की बजाय नवाचार करने से ही तरक्की सम्भव है. अनेक लोग इस समय नवाचार कर के अपने आपको बचाने का प्रयास कर रहे है.

hope it's helpful

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