क) 'दहेज लेना-देना एक बुरी बला है। इस विषय पर अपना मत व्यक्त कीजिए।
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दहेज लेना-देना- एक बुरी बला
हमारे भारतीय समाज में दहेज की प्रथा आज भी बहुत जोरों से प्रचलित है। यह हमारे लिए एक सामाजिक कलंक बनकर है। इस प्रथा ने हमारे समाज को शर्मसार कर दिया है। दहेज की प्रथा ना केवल स्त्री के अस्मिता पर हमला है बल्कि यह एक ओछी मानसिकता का भी प्रतीक है। दहेज के कारण पहले ही कितनी स्त्रियों को अपनी जान गंवानी पड़ी है, हम सभी जानते हैं। भले ही सरकार द्वारा दहेज कानून पास किया गया हो और दहेज को लेना या देना अपराध बना दिया गया हो, परन्तु आज भी भारत के कई क्षेत्र ऐसे हैं जहां पर गुपचुप दहेज लिया और दिया जाता है। हम पूरी तरह से सामाजिक रूप से इस प्रथा से मुक्त नहीं हो पाए हैं।
दहेज प्रथा महिलाओं की अस्मिता पर हमला है, यह उनकी योग्यता, क्षमता और गुणों का अपमान भी है। लड़की कितनी भी मेहनत कर ले, कितना भी पढ़े-लिख ले, कितनी सुंदर क्यों न हो लेकिन दहेज की मांग कर उसकी योग्यता और सुंदरता और उसके गुणों को कम करके आंका जाता है। उसके गुणों पर प्रश्न चिन्ह लगाया जाता है जो कि किसी भी तरह से उचित नहीं है।
यह प्रथा लड़की के पिता पर दबाव बन कर भी आती है, इस कारण देश के कई हिस्सों में लड़कियों को आज भी बोझ समझा जाता है। इसका एक मात्र कारण दहेज प्रथा है।
हमें खाली कानून बनाने से कुछ नहीं होगा। समय की मांग कि हमें पूरी तरह से नैतिक और सामाजिक रूप से इस प्रथा से मुक्त होना है। हमें जागरूक होना है ताकि लड़का-लड़की एक समान समझा जा सके। युवकों को भी इस विषय में आगे आना चाहिये और दहेज के लोभी अपने परिवार वालों का विरोध करना चाहिये तथा उन पर दहेज रहित विवाह का दबाव बनाना चाहिये।
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ANSWER
:- दहेज –एक कुप्रथा हमारे भारतीय समाज में फैली बुराईयां जैसे वधु हत्या ,बाल विवाह ,कन्या भ्रूण हत्या, रिश्वत ,भ्रष्टाचार इत्यादि बुर्राइयों का एक ही बीज है और वो है दहेज प्रथा .जिसकी वजह से गरीव और माध्यम वर्गीय मॉ,बाप अपनी कन्याओं के पैदा होते ही या तो उनका काम तमाम कर देते हैं या उन्हें पैदा ही नहीं होने देते .और जो भावुक पिता अपनी कन्या को मारने का सहस नहीं कर पाया वो उसके पैदा होते ही उसकी दहेज इक्कट्ठा करने में लग जाएगा जिससे कि कन्या के युवा होने पर उसे अच्छा घर वर मिल सके और इसी चिंता में डूबे हुए या तो वो खुद कोई गंभीर बीमारी से ग्रस्त हो जाते हैं या शोर्टकट अपनाने के लिए रिश्वत या किसी रिश्तेदार का हक छिनने या फिर खुद अपनी पत्नी को उसके मायके से गिफ्ट या त्योहारों के रूप में रकम या गहने लाने को विवश करते हैं .भारत में दहेज प्रथा सदियों से चली आ रही है प्राचीनकाल में राजा महाराजा अपने से बड़े सम्राट के साथ अपनी पुत्री का विवाह करना पसंद करते थे और रिश्ता पक्का होने से पूर्व और बाद में तोहफे के रूप में चांदी सोने के थालो में सजा के स्वर्ण मुद्राएं ,गहने ,अश्व या कोई अधीन राज्य भिजवाया जाता था .इस प्रथा का मूल सिर्फ एक ही है जो है अपनी पुत्री जो कि विवाह पश्चात किसी और के घर में रहनेवाली है उसे ससुराल वाले सताए नहीं तथा अपने से बड़े कुल में बेटी ब्याहने से खुद अपने कुल के रुतवे का अत्यधिक बढ़ जाना .और केवल माँ बाप कि ही नहीं अपितु देखा गया है कि खुद कन्याओं कि भी यहि चाहत होती है कि उनका पति उनके पिता या भाई से ज्यादा संपन्न हो और आजकल तो खुद पुत्रियां अपने घरवालों को दहेज देने के लिए विवश करती हैं जिससे कि उनके ससुराल और सोसाइटी में उनकी वाह वाह हो .दहेज की इस समस्या ने वर्तमान समय में बड़ा ही विकत रूप धारण कर रक्खा है जिसके अंतर्गत वर पक्ष गाडी ,रकम जमीन कि वधु पक्ष से मांग करते हैं और मांग पूरी ना होने पर वधु को तरह तरह से धमकाया और मारा –पीता जाता है उसपर भी दहेज की रकम ना हासिल हो तो उसे केरोसिन डाल कर जलाया जाता है जिससे उस वधु से छुटकारा मिलने के उपरान्त दोवारा वर का विवाह किया जा सके और दूसरी वधु के घरवालों से दहेज प्राप्त किया जा सके.दहेज हत्या अक्सर उन्ही वधुओं की होती है जो अपने ससुरालवालों कि नाजायज मांगो के सामने नहीं झुकती या फिर उनके माता पिता अपना घर दुकान इत्यादि बेचकर भी वर पक्ष की इच्छित राशि का प्रवंध नहीं कर पाते .गरीब मा बाप कई बार अपनी बेटी को विवश और अत्याचार को सहते हुए नहीं देख पाते और अपना सब कुछ गिरवी रख देते हैं जिसका परिणाम ये होता है कि ससुराल वालों के मुंह तो भष्मासुर कि तरह से खुले के खुले ही रहते है और वो खुद भी दर -दर की ठोकर खाने को मजबूर हो जाते हैं .एक सच्ची घटना का जिक्र करती हूँ-“मेरे एक जन पहचान वाले फतेहपुर सिकरी में पान कि दुकान चलते हैं जिससे उनके ३ लड़कियों और २ लड़कों का पढ़ाई लिखाई और घर खर्च भी चलाना कई बार संभव नहीं हो पता .बच्चियों के युवा होने पर लोगों ने उन्हें सलाह डी कि –कन्याओं का विवाह सामूहिक विवाह सम्मलेन के द्वारा कराया जाए वहां दहेज नहीं देना पड़ता और सम्मलेन में लड़की को विवाह का सारा सामान उपहार में भी मिलता है .पिता ने इक सम्मलेन में रजिस्ट्रेशन करवाया और एक उपयुक्त काम करने वाले लड़के से अपनी पुत्री का सम्बन्ध पक्का कर दिया सम्मलेन वालों ने विवाह का जोड़ा मंगल सूत्र घर गृह्श्थी का तमाम सामान उपहार स्वरुप वधु को दिया माता पिता ने भी क्षमतानुसार किया.शादी के कुछ दिन बाद से ही वर व उसके परिवार वाले वधु पर दो लाख का इंतजाम करने का दवाव डालने लगे बेचारी वधु कैसे अपने घरवालों से ये कहती क्यूंकि उसे तो परिवर कि आर्थिक तंगी का पता था .लेकिन उसकी पडौस में रहने वाली उसके ही गाँव कि एक महिला को उसकी परेशानी और उसके ऊपर होने वाले अत्याचार का पता था .उसने वधु के माँ बाप को ये सुचना दी .वधु ने अपने माता –पिता से कहा कि वो सब सह लेगी लेकिन उसके छोटे भाई बहिन का पिता ध्यान रखे क्युकी उनकी शादी और काम के लिए पैसे चाहिए वधु ने ये भी बताया कि वह माँ बनने वाली है और भगवन ने चाहां तो उसका बच्चा अपने पिता और दादी दादा के मान में उसके और उसकी माँ के लिए प्यार पैदा कर देगा .पिता ये सुनकर खुशी खुसही वापस अपने गाँव चला आया और फिर करीव ४ महीने बाद पता चला कि उनकी बेटी जो छह माह से गर्भवती थी कि जलाकर हत्या कर दी गयी और लाश को भी ठिकाने लगा दिया गया “बहुत निराशा होती है ये देखकर कि जो लड़का अग्नि के सात फेरे ले और सात वचन दे जिस लड़की को अपनी जीवन संगनी बनाता है सात जन्मों तक साथ निभाने का वचन देता है वही उसका साथ एक जन्म तो क्या कुछ वर्ष तक भी नहीं निभा पाता और अपनी कुछ महत्त्वाकांक्षाओं के कारन उस वधु कि बलि देने से भी नहीं चूकता .पति को हमारे समाज में परमेश्वर कहा जाता है क्यूँकी पत्नी अपने घर ,रिश्तों को छोड़ उसकी शरण में आती है और पति भी पत्नी को धन से ,मान से सम्मान और खुशियाँ देकर उसकी रक्षा करता है लेकिन आज कल लोग छोटी छोटी लालसाओं को पूरा करने के लिए अपनी उस पत्नी को सताता है जो उसके दुःख में सबसे ज्यादा विचलित होती है ,जो उसे भगवान मानती है और जब वह बीमार होता है तो उसकी माँ से भी ज्यादा उसके लिए प्रार्थनाएं करती है .वो पत्नी जो अपनी सेवा और प्रेम से आपको यमराज के मुंह से खींच लाने कि भी कुवत रखती है .एक औरत जो सबसे ज्यादा प्रेम अपने बच्चे से करती है वह वक्त आने पर अपने बच्चे को त्याग अपने सुहाग को चुनती है .ऐसी पत्नी को यातना देना कहाँ तक उचित है ?एक वेश्या भी एक रात में हजारों रूपये कमाती है लेकिन वह इसके लिए किसी और कि बलि नहीं अपितु अपने ही शरीर कि बलि देती है और दहेज मांगने वाले पुरुष उस वेश्या से भी गए बीते हैं जो अपने स्वार्थ के लिए अपनी निरीह पत्नी को हलाल करते हैं