कंठस्थ की हुई कविता को अभिनयसहित तथा तालबद्ध रुप में सुनाओ
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कविता क्या है?
हिन्दी में काव्य, पद्य और कविता के पर्यायवाची शब्दों के रूप में प्रयोग किए जाते हैं, पर इनमें थोड़ा भेद होता है। काव्य शब्द संस्कृत भाषा का अपना शब्द है और उसमें इस शब्द का प्रयोग साहित्य के लिए होता है संस्कृत में साहित्य के दो भेद किए गए है- पद्य काव्य और गद्य काव्य/पद्य का अर्थ छन्दोबद्ध रचना से होता है। पद्य से कविता उस अर्थ में भिन्न होती है कि कविता छन्दोबद्ध हो सकती है और छन्द रहित भी। एक अन्य काव्य भी है जिसे ‘चम्पू’ काव्य कहते हैं। इस में गद्य और पद्य दोनों शामिल होते हैं।
कविता का अर्थ एवं परिभाषा
मनुष्य संवेदनशील एवं चेतना सम्पन्न प्राणी है। इसका मन प्रकृति में प्रतिफल होने वाले सौम्य, मनोरम एवं विकराल परिवर्तनों से भी भाव ग्रहण करता है, आस-पास होने वाले दु:ख-सुख, आशा-निराशा, प्रेम-घृणा, दया-क्रोध से चलायमान रहता है। मनुष्य की इसी प्रवृत्ति की प्रेरणा से ज्ञान एवं आनन्द के उस भण्डार का सृजन, संचय एवं संवर्द्धन होता रहा है। जिसे साहित्य कहते हैं। उसी साहित्य का एक अंग कविता है। सुख-दु:ख की भावावेशमयी अवस्था का स्वर-साधना के उपयुक्त पदों में प्रकाशन ही कविता है।
कविता को अनेक भारतीय एवं पश्चिमी विद्वानों ने परिभाषित करने का प्रयास किया है। आचार्य कुन्तक ने ‘वक्रोक्ति काव्यजीवितम्’ कहकर कविता को परिभाषित किया है, वहीं दूसरी तरफ आचार्य वामन ने रीतिरात्मा काव्यस्य’ कहकर अर्थात् रीति के अनुसार रचना ही काव्य है, आचार्य विश्वनाथ ‘वाक्यम् रसात्मकम् काव्यम्’ अर्थात् रस युक्त वाक्य ही काव्य है, कह कर परिभाषित किया है।
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के अनुसार “जिस प्रकार आत्मा की मुक्तावस्था ज्ञानदशा कहलाती है, हृदय की इसी मुक्ति साधना के लिए मनुष्य की वाणी जो शब्द-विधान करती आई है, उसे कविता कहते है।” मैथ्यू आर्नोल्ड के अनुसार- “कविता के मूल में जीवन की आलोचना है।” शैले के मतानुसर “कविता कल्पना की अभिव्यक्ति है।”
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