किधी जाह तुमहिं हम जाने स्याम तुमहिं ह्याँ को नहिं पटयौ, तुम ही बीच पुलाने।। ब्रज नारिनि सौं जोग कहत हों, बात कहत नलजाने। बड़े लोग न विवेक तुम्हारे, ऐसे भए अयान ।। हमसौं कही लई हम सहि कै, जिय गुनि लेह सयाने कहँ अबला कहँ दसा दिगंबर, मष्ट कगै पहिचाने । साँच कहो तुमको अपनी सौं, बूझति बात निदाने। सूर स्याम जब तुमहिं पठायौ पठायौ, तब कहूँ मुसकाने।।
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