(क) उदारीकरण (ख) निजीकरण एवं (ग) वैश्वीकरण के आवश्यक लक्षण क्या हैं?
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(क) उदारीकरण: उदारीकरण से तात्पर्य लाइसेंस, परमिट और कोटा के रूप में सरकार के अनावश्यक नियंत्रणों और प्रतिबंधों को हटाने से है। भारत ने 1991 में उद्योगों के उदारीकरण की पहल की। भारत में उद्योगों के उदारीकरण ने निम्नलिखित रूप ले लिया।
(i) लाइसेंस का उन्मूलन: उद्योगों की स्थापना के लिए आवश्यक लाइसेंस को समाप्त कर दिया गया। लाइसेंसिंग की प्रणाली केवल छह उद्योगों अर्थात् शराब, सिगरेट, सुरक्षा, उपकरण, खतरनाक रसायन, औद्योगिक विस्फोटक और ड्रग्स और फार्मास्यूटिकल्स के लिए बनाए रखी गई थी।
(ii) उत्पादन का विस्तार: उत्पादन के पैमाने और आकार और उत्पादों की कीमत तय करने में उद्यम मुक्त हो गए। एम.आर.टी.पी. कंपनियां (100 करोड़ रुपये से अधिक की संपत्ति वाली कंपनियां) बाजार की स्थितियों के अनुसार अपने व्यवसाय के पैमाने का विस्तार करने के लिए स्वतंत्र थीं।
(iii) व्यापार प्रतिबंधों को हटाना: वस्तुओं और सेवाओं की आवाजाही को आसान बनाने के लिए व्यापार से संबंधित विभिन्न प्रतिबंध जैसे कि मात्रात्मक प्रतिबंध, कस्टम्स, , कर, टैरिफ इत्यादि को हटा दिया गया था।
(iv) विदेशी प्रत्यक्ष निवेश को प्रोत्साहित करना: बाजार में प्रतिस्पर्धा को प्रोत्साहित करने और अन्य देशों से विदेशी प्रत्यक्ष निवेश को आकर्षित करने के लिए जोर दिया गया था।
(ख) निजीकरण: निजीकरण सार्वजनिक क्षेत्र से निजी क्षेत्र के उद्यमों के लिए राज्य की मालिकी वाले उद्यमों के स्वामित्व या प्रबंधन के क्रमिक स्थानान्तरण को संदर्भित करता है। इसका मतलब निजी क्षेत्र के उपक्रमों को अधिक भूमिका प्रदान करना है। भारत में, निम्नलिखित तरीके से निजीकरण का पालन किया गया।
(i) विनिवेश: विनिवेश के लिए, सरकार ने दो तरीके अपनाए। पहला, पीएसयू की इक्विटी का एक हिस्सा बेचना और दूसरा, पीएसयू की रणनीतिक बिक्री। निजीकरण के तहत, पीएसयू की इक्विटी का एक बड़ा हिस्सा निजी क्षेत्र को बेच दिया गया था। इसके अलावा, आधुनिक खाद्य पदार्थ भारत, भारत एल्यूमीनियम कंपनी, मारुति उद्योग लिमिटेड जैसी कई कंपनियों की रणनीतिक बिक्री। आदि का उपक्रम किया गया।
(ii) औद्योगिक और वित्तीय पुनर्निर्माण बोर्ड की स्थापना: यह बोर्ड बीमार और घाटे में चल रहे उद्यमों के पुनरुद्धार के लिए स्थापित किया गया था।
(iii) सार्वजनिक क्षेत्र की भूमिका को कम करना: निजीकरण के तहत, विशेष रूप से सार्वजनिक क्षेत्र के लिए आरक्षित किए गए उद्योगों की संख्या 17 से 8 तक कम हो गई थी। वर्तमान में, केवल 3 उद्योग विशेष रूप से सार्वजनिक क्षेत्र अर्थात् रेलवे के लिए आरक्षित हैं, परमाणु खनिज और परमाणु ऊर्जा।
(iv) नवरत्न नीति: दक्षता में सुधार करने, व्यावसायिकता को बढ़ावा देने और सार्वजनिक उपक्रमों को बाजार में प्रभावी रूप से प्रतिस्पर्धा करने में सक्षम बनाने के लिए, सरकार ने नौ उच्च प्रदर्शन करने वाले सार्वजनिक उपक्रमों को 'नवरत्नों' का दर्जा दिया।
(ग) वैश्वीकरण: वैश्वीकरण से तात्पर्य दुनिया की विभिन्न अर्थव्यवस्थाओं के एकीकरण की प्रक्रिया से है। यह बढ़ती हुई खुलेपन, बढ़ती आर्थिक स्वतंत्रता और विश्व अर्थव्यवस्था में आर्थिक एकीकरण को बढ़ावा देने से जुड़ी प्रक्रिया है। भारत में, वैश्वीकरण के संबंध में निम्नलिखित नीतियों का पालन किया गया।
(i) व्यापार प्रतिबंध पर निष्कासन: व्यापार पर विभिन्न बाधाएं जैसे टैरिफ, कस्टम ड्यूटी, कोटा इत्यादि को काफी कम किया गया था।
(ii) निर्यात शुल्क और आयात शुल्क को कम करना: मुक्त व्यापार को बढ़ावा देने के लिए आयात और निर्यात पर विभिन्न कर्तव्यों और करों को हटा दिया गया था।
(iii) विदेशी पूंजी निवेश को प्रोत्साहन: विदेशी पूंजी निवेश को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से विदेशी पूंजी की इक्विटी सीमा बढ़ाने, विशेष आर्थिक क्षेत्रों की स्थापना, विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम की शुरूआत जैसे विभिन्न कदम उठाए गए थे।
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Answer:(क) उदारीकरण: उदारीकरण से तात्पर्य लाइसेंस, परमिट और कोटा के रूप में सरकार के अनावश्यक नियंत्रणों और प्रतिबंधों को हटाने से है। भारत ने 1991 में उद्योगों के उदारीकरण की पहल की। भारत में उद्योगों के उदारीकरण ने निम्नलिखित रूप ले लिया।
(i) लाइसेंस का उन्मूलन: उद्योगों की स्थापना के लिए आवश्यक लाइसेंस को समाप्त कर दिया गया। लाइसेंसिंग की प्रणाली केवल छह उद्योगों अर्थात् शराब, सिगरेट, सुरक्षा, उपकरण, खतरनाक रसायन, औद्योगिक विस्फोटक और ड्रग्स और फार्मास्यूटिकल्स के लिए बनाए रखी गई थी।
(ii) उत्पादन का विस्तार: उत्पादन के पैमाने और आकार और उत्पादों की कीमत तय करने में उद्यम मुक्त हो गए। एम.आर.टी.पी. कंपनियां (100 करोड़ रुपये से अधिक की संपत्ति वाली कंपनियां) बाजार की स्थितियों के अनुसार अपने व्यवसाय के पैमाने का विस्तार करने के लिए स्वतंत्र थीं।
(iii) व्यापार प्रतिबंधों को हटाना: वस्तुओं और सेवाओं की आवाजाही को आसान बनाने के लिए व्यापार से संबंधित विभिन्न प्रतिबंध जैसे कि मात्रात्मक प्रतिबंध, कस्टम्स, , कर, टैरिफ इत्यादि को हटा दिया गया था।
(iv) विदेशी प्रत्यक्ष निवेश को प्रोत्साहित करना: बाजार में प्रतिस्पर्धा को प्रोत्साहित करने और अन्य देशों से विदेशी प्रत्यक्ष निवेश को आकर्षित करने के लिए जोर दिया गया था।
(ख) निजीकरण: निजीकरण सार्वजनिक क्षेत्र से निजी क्षेत्र के उद्यमों के लिए राज्य की मालिकी वाले उद्यमों के स्वामित्व या प्रबंधन के क्रमिक स्थानान्तरण को संदर्भित करता है। इसका मतलब निजी क्षेत्र के उपक्रमों को अधिक भूमिका प्रदान करना है। भारत में, निम्नलिखित तरीके से निजीकरण का पालन किया गया।
(i) विनिवेश: विनिवेश के लिए, सरकार ने दो तरीके अपनाए। पहला, पीएसयू की इक्विटी का एक हिस्सा बेचना और दूसरा, पीएसयू की रणनीतिक बिक्री। निजीकरण के तहत, पीएसयू की इक्विटी का एक बड़ा हिस्सा निजी क्षेत्र को बेच दिया गया था। इसके अलावा, आधुनिक खाद्य पदार्थ भारत, भारत एल्यूमीनियम कंपनी, मारुति उद्योग लिमिटेड जैसी कई कंपनियों की रणनीतिक बिक्री। आदि का उपक्रम किया गया।
(ii) औद्योगिक और वित्तीय पुनर्निर्माण बोर्ड की स्थापना: यह बोर्ड बीमार और घाटे में चल रहे उद्यमों के पुनरुद्धार के लिए स्थापित किया गया था।
(iii) सार्वजनिक क्षेत्र की भूमिका को कम करना: निजीकरण के तहत, विशेष रूप से सार्वजनिक क्षेत्र के लिए आरक्षित किए गए उद्योगों की संख्या 17 से 8 तक कम हो गई थी। वर्तमान में, केवल 3 उद्योग विशेष रूप से सार्वजनिक क्षेत्र अर्थात् रेलवे के लिए आरक्षित हैं, परमाणु खनिज और परमाणु ऊर्जा।
(iv) नवरत्न नीति: दक्षता में सुधार करने, व्यावसायिकता को बढ़ावा देने और सार्वजनिक उपक्रमों को बाजार में प्रभावी रूप से प्रतिस्पर्धा करने में सक्षम बनाने के लिए, सरकार ने नौ उच्च प्रदर्शन करने वाले सार्वजनिक उपक्रमों को 'नवरत्नों' का दर्जा दिया।
(ग) वैश्वीकरण: वैश्वीकरण से तात्पर्य दुनिया की विभिन्न अर्थव्यवस्थाओं के एकीकरण की प्रक्रिया से है। यह बढ़ती हुई खुलेपन, बढ़ती आर्थिक स्वतंत्रता और विश्व अर्थव्यवस्था में आर्थिक एकीकरण को बढ़ावा देने से जुड़ी प्रक्रिया है। भारत में, वैश्वीकरण के संबंध में निम्नलिखित नीतियों का पालन किया गया।
(i) व्यापार प्रतिबंध पर निष्कासन: व्यापार पर विभिन्न बाधाएं जैसे टैरिफ, कस्टम ड्यूटी, कोटा इत्यादि को काफी कम किया गया था।
(ii) निर्यात शुल्क और आयात शुल्क को कम करना: मुक्त व्यापार को बढ़ावा देने के लिए आयात और निर्यात पर विभिन्न कर्तव्यों और करों को हटा दिया गया था।
(iii) विदेशी पूंजी निवेश को प्रोत्साहन: विदेशी पूंजी निवेश को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से विदेशी पूंजी की इक्विटी सीमा बढ़ाने, विशेष आर्थिक क्षेत्रों की स्थापना, विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम की शुरूआत जैसे विभिन्न कदम उठाए गए थे।
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